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सोच समझ कर ही बनाएं बेस्ट-फ्रेंड

best friendआमतौर पर यह माना जाता है कि व्यक्ति के जीवन में एक अच्छे दोस्त का होना बहुत जरूरी है. एक ऐसा दोस्त जो उसे हर मुश्किल में संभाले और उसकी खुशियों को अपना समझे. लेकिन शायद आज के भौतिकवादी युग में जब व्यक्तियों में स्वार्थ भावना अत्याधिक बढ़ चुकी है, अपने खुशियों और जरूरतों से इतर किसी के लिए सोचना टाइम वेस्ट लगता है तो ऐसे में बेस्ट फ्रेंड की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. इसीलिए अगर वर्तमान समय में किसी व्यक्ति को बेस्ट जैसा शख्स मिल जाता है तो उसे खुशकिस्मत ही कहा जाएगा.


अगर आपको ऐसा लगता है कि दोस्त की जरूरत एक विशिष्ट समय और आयु में ही पड़ती है, तो आपकी यह धारण बेमानी है. क्योंकि एक नए शोध में यह साबित हुआ है कि उम्र के हर पड़ाव में एक बेस्ट फ्रेंड की जरूरत पड़ती है. एक ऐसा दोस्त जो तनाव के समय आपको चिंतामुक्त कर सके, आपको खुश रखने की कोशिश करे.


लंदन के सिनसिनाटी अस्पताल के बाल चिकित्सक और इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता रयान एडम्स का कहना है कि बेस्ट फ्रेंड की जरूरत ना सिर्फ युवाओं या फिर वयस्कों को होती है बल्कि बारह वर्ष या उससे भी छोटी आयु के बच्चे भी एक खास दोस्त की जरूरत महसूस करते हैं.


चार दिनों तक चली इस स्टडी में 10-12 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को एक दिन में पांच बार एक डायरी भरने को दी गयी. इस डायरी में उन्हें बीते बीस मिनट में कैसा अनुभव प्राप्त हुआ इस बारे में लिखने को कहा गया. साथ ही यह भी उल्लेख करने का निर्देश दिया गया कि उन बच्चों ने इन बीस मिनटों को अकेले या फिर किसी व्यक्ति के साथ बिताया, जैसे की माता-पिता, दोस्त या फिर कोई अन्य. इसके अलावा शोधकर्ताओं ने संबंधित बच्चों के तनाव स्तर को मापने के लिए उनके सलाइवा पर भी अध्ययन किया.


इस अध्ययन के स्थापनाओं की मानें तो लगभग सभी बच्चों ने तनाव के समय अपने दोस्तों के साथ समय बिताना ही उपयुक्त समझा.


शिक्षा मनोवैज्ञानिक डॉ. केरन मेजर्स का भी यह कहना है कि भले ही किशोरावस्था और युवावस्था में बच्चों द्वारा बनाए गए दोस्त उनको गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर अभिभावकों और बच्चों के लिए समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं. लेकिन इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि यही दोस्त बच्चे के जीवन को खुशहाल और तनाव मुक्त बना सकते हैं.


डॉ. मेजर्स ने यह भी कहा कि दोस्ती जैसा संबंध बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास में बहुत महत्वपूर्ण होता है. इतना ही नहीं साथ पढ़ने और खेलने वाले दोस्त बच्चे को हंसमुख और मेल-जोल बढ़ाना भी सिखाते हैं.


अध्ययन की विशेषता बताते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थापनाएं ना सिर्फ युवाओं पर बल्कि वयस्कों पर भी शत-प्रतिशत रूप से लागू होती हैं.


भले ही यह अध्ययन विदेशी बच्चों को केन्द्र में रखकर किया गया हो, लेकिन अगर भारतीय परिदृश्य में इस शोध की स्थापनाओं पर गौर करें तो शायद हमारे समाज में दोस्ती की अहमियत ज्यादा देखी जा सकती है. दोस्तों के बारे में यह माना गया है कि अगर वह चाहें तो व्यक्ति के जीवन को सुधार और बिगाड़ सकते हैं.


लेकिन यह तथ्य नकारा भी नहीं जा सकता कि एक निश्चित आयु तक पहुंचने के बाद बच्चे अपने दोस्तों को अभिभावकों से ज्यादा महत्व देने लगते हैं. यहां तक कि वह ना तो अभिभावकों के साथ ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं और ना ही अपने जीवन में उनके हस्तक्षेप को सहन करना पसंद करते हैं. एकबारगी उनके इस स्वभाव को बचपना समझकर नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन अगर हर बार यही गलती दोहरायी जाएगी तो नि:संदेह इससे बच्चा बहुत जल्दी गलत मार्ग पर चलने लगेगा.


अंग्रेजी में एक कहावत है कंपनी मेक्स ए मैन, अर्थात संगत ही व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है. इसीलिए हमें हमेशा ऐसे दोस्तों का चुनाव करना चाहिए जो हमारे चरित्र का सकारात्मक विकास करने में अपनी भूमिका निभाएं. क्योंकि गलत संगत में पड़कर हम अपने और अपने परिवार के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं.


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