एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में दो बार दांत आते हैं. जब पहली बार बच्चे के मुंह में दांत आते हैं तो उन्हें दूध के दांत कहा जाता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ प्राय: सभी बच्चों के दूध के दांत टूट जाते हैं जिनके बाद नए दांतों का आगमन होता है. भले ही यह नए दांत दूध के दांतों की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं लेकिन इनकी सबसे बड़ी कमी यह है कि एक बार टूटने के बाद दांतों का दोबारा आना नामुमकिन होता है.
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने दूध के दांतों से जुड़ी एक बहुत महत्वपूर्ण विशेषता को सार्वजनिक किया है. लेकिन इस बार यह रिपोर्ट किसी विदेशी संस्थान या शोधकर्ताओं द्वारा जारी नहीं की गई है. इस बार भारतीय चिकित्सकों ने अपने हुनर का दम दिखाते हुए यह प्रमाणित किया है कि दूध के दांत बच्चों को बहुत प्रिय होते हैं लेकिन टूटने के बाद भी यह दांत आगामी जीवन में बच्चे को होने वाली कई परेशानियों में सहायक सिद्ध हो सकते हैं.
चिकित्सकों का कहना है कि दूध के दांत टूटने के बाद उन्हें फेंकने के बजाए आप उन्हें डेंटल स्टेम सेल बैंक में सहेज कर रख सकते हैं, ताकि भविष्य में कभी जरूरत पड़ने पर उनका प्रयोग किया जा सके. क्योंकि बच्चों के आगामी जीवन में अगर उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो यह दूध के दांत, स्टेम कोशिकाओं के निर्माण के प्रयोग में आ सकते हैं.
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दांत संबंधी रोगों के विशेषज्ञों का कहना है कि 5 से 12 साल उम्र के बच्चों के दूध के दांतों में से स्टेम कोशिकाएं बहुत आसानी से निकाली जा सकती है. जब बच्चों के दूध के दांत हिलने लगें तो उन्हें निकालकर, बिना किसी विशेष प्रक्रिया या जटिलता के स्टेम कोशिकाएं इकट्ठी की जा सकती है.
अगर इस नई प्रकार की स्टेम चिकित्सा को भारतीय परिदृश्य के अनुरूप देखें तो भले ही भारत में डेंटल स्टेम सेल बैंकिंग नई व्यवस्था है, लेकिन फिर भी इसे अम्बलीकल कॉर्ड ब्लड बैंकिंग की अपेक्षा अधिक सफल और प्रभावी विकल्प समझा जा रहा है. स्टेम सेल थिरेपी के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति के शरीर में मौजूद क्षतिग्रस्त उत्तकों या फिर ना ठीक होने वाले घाव में स्वस्थ एवं नई कोशिकाएं स्थापित की जाती हैं.
स्टेम्ड बायोटेक के संस्थापक शैलेष गडरे का कहना है कि अम्बलीकल कॉर्ड रक्त सम्बंधी कोशिकाओं का एक अच्छा स्त्रोत है. रक्त संबंधी बीमारियों में इनका प्रयोग किया जा सकता है. विशेषकर ब्लड-कैंसर जैसी गंभीर परिस्थिति में यह बेहद कारगर साबित होती हैं. ऊतक सम्बंधी स्टेम कोशिकाएं हासिल करने के उद्देश्य को पूरा करने में दांत एक अच्छा स्त्रोत साबित हो सकता है.
डॉक्टरों का यह भी कहना है कि यह कोशिकाएं शरीर के सभी प्रकार के क्षतिग्रस्त ऊतकों के प्रयोग में आ सकती हैं. उदाहरण के तौर पर अल्जाइमर बीमारी की स्थिति में मस्तिष्क में, पार्किंसंस बीमारी होने पर आंख में, सिरोसिस होने पर लीवर में, मधुमेह होने पर अग्नाशय में व फ्रैक्चर की दशा में हड्डियों के अलावा त्वचा में भी इनका प्रयोग किया जा सकता है.
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