एक समय पहले तक महिलाएं पूरी तरह अपने पृथक अस्तित्व और उसकी महत्ता से अनजान थीं. वह परिवार के संरक्षण में रहने और पति की इच्छानुसार जीवन-यापन करने में ही अपना हित समझती थीं. लेकिन उनकी प्रतिबद्धता और समर्पण भाव को आंकना शायद जरूरी नहीं समझा जाता था. हम इस बात को नकार नहीं सकते कि अपनी व्यक्तिगत जरूरतों और अपेक्षाओं को नजरअंदाज कर अपने सभी पारिवारिक कर्तव्यों की पूर्ति करने के बावजूद महिलाओं को घर अथवा बाहर दोनों परिदृश्य में कभी भी एक असहाय और पराश्रित से अधिक और कुछ नहीं समझा गया. शिक्षा से तो उन्हें वंचित रखा ही जाता था साथ ही उनकी निर्णय लेने की काबीलियत को भी हमेशा संदेह की दृष्टि से ही देखा जाता था. यही वजह है कि समाज या फिर परिवार में उसे महत्व देना हास्यास्पद समझा जाता था.
इन सभी पुरानी और रुढ़िवादी मानसिकता और पारिवारिक हालातों में भले ही थोड़ा बहुत अंतर आया हो लेकिन आज भी हम महिलाओं को मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप में पुरुषों से कमतर ही आंकते हैं. ऐसी लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो महिलाओं को सिर्फ घर संभालने और परिवार तक ही सीमित रखने का पक्ष लेते हैं. उनके अनुसार महिलाएं ना सिर्फ पुरुषों से शारीरिक बल में कमजोर होती हैं बल्कि प्राकृतिक रूप से ही मानसिक रूप से दृढ़ नहीं होतीं. निर्णय लेने और जोखिम वाले कामों में भी महिलाओं की कोमलता और भावुकता सामने आती है. वह कभी भी निष्पक्ष होकर या संकल्प शक्ति के साथ निर्णय नहीं ले सकतीं.
लेकिन एक नए अध्ययन ने यह प्रमाणित कर दिया है भले ही महिलाओं की शारीरिक क्षमता पुरुषों से कम हो, लेकिन मानसिक रूप से वह बहुत सख्त और दृढ़ निश्चयी होती हैं. इतना सब होने के बावजूद अगर कभी वह गलत निर्णय लेती या फिर स्वतंत्र जीवन यापन करने से हिचकती हैं तो यह उनकी प्रकृति नहीं बल्कि आस-पास के वातावरण और पारिवारिक हालातों की ही देन माना जाएगा.
एक्सेस यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन द्वारा संपन्न इस अध्ययन के नतीजे यह साफ बयां करते हैं कि आज जहां महिलाएं पुरुषों का आधिपत्य माने जाने वाले क्षेत्र में अपनी सफलता दर्ज करवा रही हैं, वहीं दूसरी ओर जरूरत पड़ने और उन पर भरोसा रखने जैसे हालातों में वह जोखिम उठाने और सफल निर्णय लेने भी पीछे नहीं हटतीं.
शोधकर्ताओं की मानें तो वे महिलाएं जिनके जीवन में अन्य महिलाओं का साथ या प्रभाव अधिक रहता है वह उन महिलाओं की अपेक्षा कहीं ज्यादा जोखिम वाले कार्य करती हैं जो हमेशा किसी ना किसी पुरुष के संरक्षण में रहती या बड़ी होती हैं.
इस अध्ययन के अंतर्गत छात्राओं को तीन कक्षाओं में बांट दिया गया. एक कक्षा में सिर्फ छात्राएं, दूसरे में सह-शिक्षा और तीसरे में सभी पुरुष. वैज्ञानिकों ने पाया कि जिस कक्षा में सिर्फ छात्राएं थीं वहां लॉटरी जैसे जोखिम भरे काम में दिलचस्पी रखने वाली महिलाओं की संख्या कहीं ज्यादा थी. मुख्य शोधकर्ता एलिसन बूट का मानना है कि लॉटरी और व्यवसाय जैसे क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों की ही तरह सफल सिद्ध हो सकती हैं.
भले ही यह एक विदेशी अध्ययन है लेकिन भारत जैसे परंपरा प्रधान और रुढ़िवादी देश के वर्तमान हालात इससे कुछ ज्यादा भिन्न नहीं हैं. आज कितनी ही महिलाएं ऐसी हैं जो अपने व्यवसाय को चला रही हैं. नौकरी में तो उनकी भागीदारी उल्लेखनीय है ही साथ ही व्यवसाय के क्षेत्र में उनकी सफल उपस्थिति और साख भी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. महिलाओं ने स्वयं अपनी काबीलियत के बल पर यह प्रमाणित कर दिया है कि अगर वह अधीन रहकर परिवार संभाल सकती हैं तो व्यवसाय या जोखिम भरे क्षेत्रों में अपनी सूझ-बूझ और व्यक्तिगत प्रयत्नों के कारण कोई भी बाधा पार कर सकती हैं.
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