हम इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं कर सकते कि जहां एक ओर मजबूत आर्थिक हालात व्यक्ति को आत्मसंतुष्टि प्रदान करते हैं वहीं उसके पारिवारिक संबंधों पर भी सकारात्मक प्रभाव ही डालते हैं. अगर कोई परिवार आर्थिक रूप से सशक्त है तो बहुत हद तक संभव है कि उस परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध भी सुखमय और व्यवस्थित रहेंगे. लेकिन अगर दुर्भाग्यवश संबंधित व्यक्ति की आर्थिक दशा अनुकूल नहीं है तो उसे सार्वजनिक और निजी तौर पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वैसे भी व्यक्ति की सारी जरूरतें धन पर ही निर्भर होती हैं, धन ही जरूरतें और इच्छाएं पूरी करता है और धन की कमी व्यक्ति को हताश भी बहुत जल्दी करती है.
आज के समय में व्यक्ति के जीवन में पैसे की अहमियत इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि बिना धन-दौलत के व्यक्ति के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, उसकी खुशहाली तो बहुत दूर की बात है. मंदी का दौर ना सिर्फ एशियन लोगों को प्रभावित करता है बल्कि विदेशी लोग जो मस्तमौला और खुले विचारों वाले अधिक समझे जाते हैं, वह भी मंदी के दर्द को झेल नहीं पाते.
अगर एक नए अध्ययन की मानें तो आर्थिक मंदी के कारण लंदन में दो हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह बात प्रमाणित की है कि 2008 से लेकर 2011 तक जारी आर्थिक मंदी के कारण लंदन में दिल का दौरा पड़ने के कारण पहले साल में 2000 मौतें हुईं. उल्लेखनीय है कि 2002 से लेकर 2008 के बीच दिल का दौरा पड़ने से मौत होने जैसे आंकड़े बहुत कम थे लेकिन 2008-2011 के बीच ना सिर्फ ज्यादा लोगों की मौत हुई बल्कि अन्य कई लोगों को अस्पताल में भी रहना पड़ा.
अध्ययन से जुड़ी मुख्य शोधकर्ता केट स्मोलिना का कहना है कि 2008-2011 के बीच हुई हजारों लोगों की मौत का कारण दिल का दौरा पड़ना था. इस समय मंदी का दौर भी चल रहा था. यह संभावना प्रबल है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे लोग अपने बिगड़ते हालातों से त्रस्त हो गए हों जिस कारण उन्हें दिल का दौरा पड़ा.
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