अकसर लोगों को कहते सुना जा सकता है कि वे एक ऐसे व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाना चाहते हैं जिनकी आदतें और शौक उनसे मेल खाते हों ताकि आगे चलकर विवाहित जीवन में उन्हें मतभेदों का सामना ना करना पड़े. वे युवा जो विवाह करने की योजना बना रहे हैं उन्हें भी यही ठीक लगता है कि उनकी और उनके भावी साथी की पसंद-नापसंद का मिलना आगामी जीवन में बहुत सहायक सिद्ध होता है.
अगर आप भी यही सोचते हैं कि पसंद, शौक और आदतों में समानता वाले लोगों के लंबे समय तक साथ रहने की संभावना अधिक होती है, तो आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि यह मात्र एक भ्रम है. क्योंकि वास्तविकता यह है कि समान स्वभाव वाले लोग जल्दी एक-दूसरे से बोर हो जाते हैं.
एक नए अध्ययन की मानें तो विवाहित दंपत्ति के बीच व्यक्तित्व संबंधी जितनी असमानताएं या मुद्दों पर अलग-अलग राय होती है उतने ही वे दोनों एक-दूसरे को समझने का प्रयत्न करते हैं. प्रयत्न करने में वे एक-दूसरे से बोर नहीं बल्कि और ज्यादा निकट आ जाते हैं.
इस शोध में उन विवाहित जोड़ों को शामिल किया गया जो भिन्न-भिन्न स्वभाव और पसंद होने के बावजूद पिछले चालीस साल से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं. उनकी पर्सनैलिटी या मौलिक स्वभाव का विश्लेषण कर उन्होंने पाया कि एक साथ खुश रहने के लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि दो लोगों की पसंद और दृष्टिकोण एक समान हों.
स्टडी में तो यहां तक कहा गया है कि वैयक्तिक असमानताएं और विचारों में अंतर कई बार दो लोगों को एक-दूसरे से हमेशा के लिए जोड़कर रखते हैं.
भारतीय परिदृश्य के अनुसार अगर हम इस अध्ययन पर नजर डालें तो भारत में आज भी प्रमुखता के साथ परंपरागत विवाह शैली का अनुसरण किया जा रहा है. जिसके अनुसार विवाह से पहले युवक-युवती एक-दूसरे से बहुत अच्छी तरह परिचित नहीं हो पाते. ऐसे में उन्हें यह बात स्पष्ट नहीं होती कि जिससे वे विवाह करने जा रहे हैं उसका स्वभाव और आदतें कैसी हैं. लेकिन फिर भी भारत में विवाह संबंध के सफल होने के आंकड़े अन्य देशों की अपेक्षा सबसे अधिक हैं. वहीं प्रेम-विवाह में एक-दूसरे को अच्छी तरह समझने और जानने के बाद भी दंपत्ति के बीच परेशानी होना एक सामान्य बात है. हालांकि वैवाहिक संबंध की नियति पहले से निर्धारित होना या जान लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है. लेकिन आंकड़ों के आधार पर कम से कम भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह नतीजे उपयुक्त हैं.
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