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किशोर क्यों ललचाते हैं नशे के लिए!!

teenage drug useआमतौर पर यह समझा जाता है कि किशोरावस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव है जिसमें कोई भी जोखिम उठाना मुश्किल नहीं. अपने दोस्तों और परिवारवालों के सामने खुद को बेहतर साबित करने के लिए किशोर कुछ भी कर सकते हैं. दूसरे आयु वर्ग का व्यक्ति जिस काम को करने से पहले हिचकिचाएगा या फिर सोच-विचार करेगा, किशोर वही काम बिना विचारे पूरा करने की कोशिश करते हैं. उन्हें अगर बार-बार उकसाया जाए तो वह किसी भी प्रकार का काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं.


प्राय: देखा जाता है कि किशोरावस्था में जोखिम उठाना और नए-नए अनुभव ग्रहण करने जैसी प्रवृत्ति बढ़ जाती है. अगर ध्यान ना दिया जाए तो वह बहुत जल्दी किशोर नशे की गिरफ्त में भी चले जाते हैं.

लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि आखिरकार किशोरों के नशा करने या उत्तेजित होकर जोखिम उठाने के पीछे कारण क्या है?

एक नए अध्ययन की मानें तो किसी विशेष परिस्थिति या चुनौती के समय किशोरों का मस्तिष्क किसी व्यस्क व्यक्ति के मस्तिष्क से थोड़ा अलग तरीके से काम करता है.


यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग के वैज्ञानिकों द्वारा संपन्न इस शोध के द्वारा यह स्थापित किया गया है कि वयस्कों की अपेक्षा किशोर बहुत जल्दी अवसादग्रस्त और नशे का शिकार हो सकते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर किसी किशोर को जोखिम या नशे के एवज में पुरस्कार या लालच दिए जाने की बात की जाए तो यह बात उनके मस्तिष्क में बहुत देर तक रहती है. जिसके कारण वह हमेशा यही सोचता रहता है कि अगर उसने यह काम कर लिया तो उसे पुरस्कार मिल सकता है. उसकी यह मानसिकता उसे जल्द से जल्द वह काम पूरा करने के लिए उकसाती रहती है.


चूहों पर संपन्न इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह पाया कि जब उनके सामने खाना रखा गया तो बड़े और छोटे चूहों की प्रतिक्रियाओं में बहुत हद तक अंतर था.

प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमीज ऑफ साइंस पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के अनुसार ऐसे विचारों के देर तक किशोरों के मस्तिष्क में रहने से वह सही और गलत के बीच अंतर नहीं कर पाते. हालांकि यह शोध चूहों पर किया गया है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव मस्तिष्क पर भी यह बिलकुल सटीक बैठ सकता है.


वैसे अगर हम इस शोध को भारतीय किशोरों की मानसिकता के आधार पर देखें तो बस यह विचार कर कि शोध के अनुसार ऐसा होगा ही उन पर ध्यान ना देना कतई सही नहीं कहलाएगा. किशोरों को सही और गलत के बीच अंतर करवाना, उनमें नैतिकता के भाव विकसित करना और उनकी गलतियों पर उन्हें समझाना अभिभावकों का सबसे पहला दायित्व है. कम उम्र में नशा करना आगे चलकर गंभीर परिणाम पैदा कर सकता है. शोध पर आश्रित होकर सोचना या किशोरों को पूरी छूट देना किसी भी रूप में सही नहीं है.


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