वैसे तो हर दिन एक नया ट्रेंड या फैशन हमारे युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता ही है, जिसके अनुसार युवा अपने पहनने, खाने और बोलने के तरीके को पूरी तरह परिवर्तित कर लेते हैं. उन्हें जैसे ही पता चलता है कि आजकल फलाना चीज फैशन में है, कहीं वह दोस्तों के बीच ओल्ड फैशन्ड ना कहलाने लगें, इस डर से वह उसी समय खुद को फैशनेबल दिखाने के लिए प्रयासरत हो जाते हैं. फिर चाहे जो नया फैशन आया हो, कितना भी महंगा हो या उन पर ना फबने वाला क्यों ना हो, वह बिना सोचे-समझे उसका अनुसरण करने लगते हैं.
फैशन की इस कड़ी में आजकल जो ट्रेंड प्रमुखता से अपनाया जा रहा है वह है बालों को भिन्न-भिन्न कलर करवाने का. आपने प्राय: युवकों और युवतियों को बालों के प्राकृतिक रंग को आउट डेटेड करार देते हुए अजीब-अजीब रंग में अपने बाल रंगवाते जरूर देखा होगा. जैसा कि युवावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण विकसित होना एक सामान्य बात है इसी तर्ज पर जहां युवक खुद को कूल दिखाने के लिए बालों को कलर करवाते हैं, वहीं युवतियां भी आकर्षण का केन्द्र बनने के लिए बालों को सुनहरे रंग में रंगवा देती हैं.
वैसे तो यह फैशन संस्कृति विदेशों से ही भारत में आती है लेकिन हाल ही में हुआ एक विदेशी शोध स्वयं ऐसे आए दिन उजागर होने वाले ट्रेंड्स की पोल खोल रहा है. क्योंकि इस अध्ययन ने यह प्रमाणित किया है कि वे महिलाएं जो अपने बालों को रंगवा देती हैं वह कभी भी पुरुषों को आकर्षित नहीं कर सकतीं. इसके पीछे कारण यह है कि पुरुषों को काले बालों वाली महिलाएं सबसे ज्यादा आकर्षक लगती हैं. उन्हें हल्के या लाल बालों वाली महिलाओं में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रहती.
अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने महिलाओं के बालों को अलग-अलग रंग देकर पुरुषों के सामने भेजा. इस दौरान उन्होंने पाया कि काले बालों वाली महिलाएं पुरुषों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं. इससे पहले यह माना जाता था कि पुरुष हल्के बालों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं, लेकिन यह नया शोध पुरानी मानसिकता को बदलने के लिए काफी है.
हालांकि पाश्चात्य देशों में जलवायु के अनुसार अधिकांश मामलों में बालों का रंग हल्का ही होता है. लेकिन भारत में यह एक फैशन के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है. अलग-अलग तरीके से बालों को रंगवाना बालों की प्राकृतिक खूबसूरती को तो समाप्त करता ही है साथ ही बालों की मजबूती को भी नकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है.
वैसे तो फैशन के दीवाने युवाओं की मानसिकता को बदलना आसान नहीं है लेकिन हो सकता है इस शोध और उसके नतीजे पढ़ने के बाद शायद हमारे युवाओं का इस ओर रुझान थोड़ा कम हो जाए.
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