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होममेकर बनाम कामकाजी स्त्री

womenहोममेकर्स ज्यादा खुश हैं या नौकरीपेशा स्त्रियां? कभी-कभी होममेकर्स को अपनी स्थिति बुरी लगती है तो कई बार नौकरीपेशा स्त्रियां नाखुश दिखती हैं। दिल्ली की 55 वर्षीय कल्पना लांबा होममेकर हैं। वह एक कॉलेज में लेक्चरर थीं, लेकिन बच्चों की खातिर उन्हें जॉब छोडनी पडी। कहती हैं, जिन बच्चों की परवरिश केलिए मैंने नौकरी छोडी, उन्हीं के पास बाद में मेरे लिए समय नहीं रहा। मैं रोज सुबह सबसे पहले उठती, पति और बच्चों के लंच बॉक्स तैयार करती और नाश्ते की टेबल पर उनका इंतजार करती। संडे को मेरा मन होता कि सबके साथ कहीं बाहर निकलूं तो बाकी लोग आराम के मूड में होते। हरेक की अपनी दुनिया थी, जिसमें मेरे लिए समय कम था। शादी के बाद बच्चे अपनी-अपनी गृहस्थी में मसरूफ हैं, पति रिटायर नहीं हुए हैं। मेरी लाइफ अभी भी वैसी ही है। अब अकेलापन खलता है। लगता है नौकरी छोडने का मेरा फैसला गलत था।


दूसरी ओर शादी के बाद एम.एन.सी. में अपने बेहतरीन करियर को छोडने वाली गुडगांव (हरियाणा) की नेहा शर्मा कहती हैं, पेरेंट्स की ख्वाहिश थी कि मैं नौकरी करूं, मैंने की। 3-4 साल मन लगा कर काम किया। पिछले साल मेरी शादी हुई तो मुझे लगा कि पति व परिवार को पूरा समय दूं। हो सकता है कि कुछ वर्ष बाद मैं दोबारा जॉब करूं, अभी तो घर मुझे अच्छा लग रहा है।


नॉन-वर्कर्स नहीं हैं होममेकर्स: सुप्रीम कोर्ट पिछले वर्ष दुर्घटना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पार्लियामेंट को होममेकर्स की भूमिका पर पुनर्विचार करने को कहा। जस्टिस ए.के. गांगुली ने कहा, स्त्रियां घर बनाती हैं, समस्त घरेलू कार्य करती हैं, बच्चों की परवरिश करती हैं, उन्हें पाल-पोस कर बडा करती हैं। वे परिवार को अपनी जो सेवाएं देती हैं, उन्हें बाजार से नहीं खरीदा जा सकता। लेकिन खेद का विषय यह है कि उनके कार्यो का अब तक मूल्यांकन नहीं किया गया है।


वर्ष 2001 में हुई जनगणना में कहा गया था कि भारत में 36 करोड स्त्रियां नॉन-वर्कर्स हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि होममेकर्स को नॉन-वर्कर्स की श्रेणी में रखना उनके श्रम का अपमान करना है।


इस मामले में पीडित की पत्नी सडक दुर्घटना में मारी गई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पीडित को ढाई लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। फैसले के खिलाफ व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इस पर कोर्ट ने कहा कि मुआवजा तय करते समय होममेकर द्वारा किए गए हर कार्य का मूल्य आंका जाना चाहिए। उसकी आय को पति की कमाई का महज एक तिहाई मानना गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की रकम को ढाई लाख से बढा कर छह लाख रुपये किया। साथ ही अपील की तारीख से मुआवजे में ब्याज की राशि भी जोडने को कहा।


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साभार – जागरण याहू


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