शारीरिक संबंध हमेशा से ही मनुष्य की जिज्ञासा का केन्द्र रहे हैं. लेकिन फिर भी एक सामान्य व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वह विवाह के पश्चात या फिर उम्र के परिपक्व पड़ाव पर पहुंचने के बाद ही शारीरिक संबंधों को स्वीकार करे. लेकिन अत्याधुनिक और बदलती जीवनशैली के कारण इस उम्मीद का कोई अर्थ नहीं रह गया है. क्योंकि आज गर्लफ्रेंड और ब्वॉयफ्रेंड की अवधारणा आम जन मानस के लिए एक सामान्य मसला बन कर उभरने लगी है. युवावस्था या स्कूल के दिनों में ही बच्चे विपरीत लिंग के साथी के प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित होने लगते हैं. निश्चित तौर पर इस आकर्षण को हम प्रेम का नाम नहीं दे सकते. यही कारण है कि आजकल युवाओं और स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के बीच शारीरिक संबंध स्थापित होना एक चिंतनीय मसला बन कर उभरने लगा है.
किशोरावस्था और युवावस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें व्यक्ति अपने आगामी भविष्य की नींव रखता है. उनका कॅरियर पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि वे स्कूल और कॉलेज के समय में अपनी पढ़ाई को कितनी संजीदगी से लेते हैं. ऐसे में अभिभावकों को हमेशा यहीं चिंता रहती है कि कहीं अफेयर के चक्कर में पड़कर उनका बच्चा कॅरियर की राह से ना भटक जाए.
अगर आप भी उन्हीं अभिभावकों में से हैं जिन्हें हमेशा यही बात सताती रहती है कि कहीं प्रेम संबंध बच्चे को उनके मूल उद्देश्य से दूर ना कर दें तो आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य हो सकता है कि शारीरिक संबंध कभी भी पढ़ाई या कॅरियर की राह में रुकावट नहीं बनते. अटलांटा स्थित अमेरिकन सोशियोलॉजी एसोसिएशन के वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर यह प्रमाणित किया है कि शारीरिक संबंध कभी भी बच्चे के स्कूल और कॉलेज के प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते.
शोधकर्ताओं का कहना है कि वे बच्चे जो अपने साथी के प्रति गंभीर होते हैं वह अपने प्रेमी से भावनात्मक समर्थन की भी उम्मीद करते हैं. ऐसे में उनकी आतुरता और तनाव के स्तर में बहुत कमी आती है. अगर वे अपने प्रेम संबंध से संतुष्ट होते हैं तो वे अपनी पढ़ाई पर भी समान ध्यान देते हैं.
लेकिन अगर हम इस शोध को भारतीय परिदृश्य के अंतर्गत देखें तो भारत जैसे रुढ़िवादी और परंपरागत देशों में विवाह पूर्व शारीरिक संबंध स्थापित करना निंदनीय और घृणित कृत्य माना जाता है. सामाजिक दृष्टिकोण में ऐसे जोड़े कभी भी सम्मान का पात्र नहीं समझे जाते जो विवाह से पहले ही शारीरिक संबंधों का अनुसरण करने लगते हैं. लेकिन इस इंटरनेट युग में युवाओं के लिए सेक्स जैसे विषय भावनात्मक नहीं मानसिक आकर्षण का केन्द्र बनते जा रहे हैं.
वैसे भी अध्ययन के अनुसार बच्चे जब अपने साथी और प्रेम-संबंध के प्रति संजीदा होते हैं तभी उनकी पढ़ाई और स्कूल के प्रदर्शन पर असर नहीं पड़ता लेकिन एक चिंताजनक मसला यह है कि क्या इस छोटी उम्र में बच्चे संबंध की गंभीरता को समझ सकते हैं? क्या वह मानसिक रूप से इतने परिपक्व हो जाते हैं कि प्रेम के वास्तविक महत्व को अपने जीवन में स्थान दे पाएं? ऐसे हालातों में माता-पिता को सही ढंग से अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए. उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि उनकी संतान अपने कॅरियर और पढ़ाई को पूरा महत्व दें.
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