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लिव इन के बाद घट जाती हैं तलाक की संभावनाएं!!

live in relationshipविदेशों की भांति भारतीय समाज में भी लिव इन रिलेशनशिप के तहत बिना किसी सामाजिक बंधन में बंधे साथ रहने वाले जोड़ों की संख्या बढ़ती जा रही है. भले ही पाश्चात्य देशों ने ऐसे संबंधों को स्वीकार्यता प्रदान कर दी हो, लेकिन भारत में अभी इसे पूर्ण रूप नहीं स्वीकार किया गया है. इतना ही नहीं, यहॉ जो ऐसा करता है उसे समाज की कोप दृष्टि और घृणा का भी सामना करना पड़ता है.


सामाजिक मूल्यों के इतर भी लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अनेक तरह के विरोधाभास हमारे समाज में विद्यमान हैं. ऐसा समझा जाता है कि जो प्रेमी जोड़ा शादी से पहले एक साथ रह लेता है, पहले तो उनका रिश्ता विवाह तक पहुंच ही नहीं पाता, लेकिन अगर पहुंच भी जाता है तो वह ज्यादा समय तक एक साथ नहीं रह पाते और जल्द ही तलाक ले लेते हैं.


एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च के अनुसार जो व्यक्ति बिना शादी के साथ रह लेते हैं, उनके तलाक लेने की संभावनाएं अत्याधिक बढ़ जाती हैं, बजाय उनके जो विवाह के बाद साथ रहना शुरू करते हैं.


लेकिन शायद यह अध्ययन अब थोड़ा पुराना हो गया है. क्योंकि एक नई स्टडी ने तो पूर्व के नतीजों को पूरी तरह नकार कर यह प्रमाणित कर दिया है कि जो युवा जोड़े विवाह से पहले एक साथ रह चुके होते हैं, उनकी विवाह के बाद तलाक की संभावनाएं अपेक्षाकृत कम हो जाती हैं.


ऑफिस ऑफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स द्वारा कराए गए इस शोध के अनुसार वे प्रेमी जोड़े जो बिना किसी सामाजिक या कानूनी मान्यता प्राप्त किए एक लंबे समय तक साथ रहते हैं, विवाह के पश्चात वह अपने संबंध को पूरी आत्मीयता से बढ़ावा देते हैं, ना कि उसे सामाजिक और पारिवारिक दायित्व समझ कर वहन करते हैं.


डेली मेल में प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट की मानें तो वे वैवाहिक दंपत्ति जो विवाह से पहले भी शारीरिक संबंधों में लिप्त रह चुके हैं, उनके अपने वैवाहिक संबंध की पांचवीं सालगिरह से पहले तलाक लेने के अनुपात में काफी हद तक गिरावट आई है. विवाह पूर्व साथ रहने की इस लंबी प्रक्रिया को ही तलाक के आंकड़ों में गिरावट का कारण माना गया है.


लिव इन रिलेशनशिप की महत्ता बताते हुए शोधकर्ताओं का कहना है कि विवाह से पहले साथ रहना वैवाहिक संबंध के लिए एक सुरक्षा दीवार का काम करता है, जो अस्थिर रिश्तों को तलाक की भेंट चढ़ने से रोक सकता हैं. यह उन कमजोर वैवाहिक संबंधों से कहीं बेहतर है जो कभी भी टूट सकते हैं.


पाश्चात्य देशों के सामाजिक और पारिवारिक हालातों से तो हम सभी भली प्रकार से अवगत हैं. विदेशी समाज में लिव इन जैसे संबंध कोई बड़ी बात नहीं हैं, इसके पीछे कारण यह है कि पाश्चात्य देशों के लोगों पर समाज द्वारा कोई खास नियम कानून नहीं लगाए गए हैं. वह कुछ भी करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं. यहां तक कि वह शारीरिक संबंधों का खुले आम प्रदर्शन करना भी आधुनिकता ही समझते हैं. लेकिन भारतीय परिदृश्य में परिस्थितियां बिलकुल उलट हैं. यहां महिला हो या पुरुष दोनों को ही नैतिक और सामाजिक दयित्वों का निर्वाह करना पड़ता है. हमारा परंपरावादी समाज विवाह के बाद ही महिला और पुरुष के बीच संबंध को स्वीकार करता है. इसीलिए लिव इन जैसे संबंध यहां अनैतिक रूप में ही देखे जाते हैं.


हालांकि इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि ऐसे रिश्तों की बढ़ती लोकप्रियता का बुरा असर खासतौर से हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है. लिव इन जैसे संबंधों को कानून और समाज का कोई संरक्षण प्रप्त नहीं होता जिसकी वजह से साथ रहने वाले जोड़े एक दूसरे पर कोई अधिकार नहीं रख सकते. दोनों में से कोई भी कभी भी संबंध तोड़ सकता है. इन संबंधों का विवाह में तब्दील होना थोड़ा मुश्किल ही होता है.


यह बात कदापि नकारी नहीं जा सकती कि लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे रिश्ते विशेषकर महिलाओं को ही प्रभावित करते हैं. जिन संबंधों को पारिवारिक और सामाजिक तौर पर मान्यता न मिले, यह अकसर देखा गया है कि ऐसे संबंध स्थायी नहीं रह पाते. क्योंकि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं, इसके अलावा वह महिलाएं जो बगैर शादी किए किसी पुरुष के साथ रह चुकी हों, उसे हमेशा गलत नज़रों से ही देखता है और उसकी मनोदशा पर कोई ध्यान नहीं देता. ऐसा व्यवहार नि:संदेह उसे मानसिक रूप से आहत करता है. लेकिन जैसे हर बार होता है, पुरुष की गलती को भूल समझ के माफ कर दिया जाता है. परिणामस्वरूप ऐसे संबंध जब टूटते हैं तो उनके टूटने का खामियाजा हमेशा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है.


हो सकता है विदेशी संस्थान द्वारा कराया गया यह शोध कुछ हद तक सही हो, लेकिन ऐसे कई उदाहरण हमें देखने को मिल जाते हैं, जिसमें लिव इन तक तो सब ठीक चला लेकिन जैसे ही शादी की बात आई तो दोनों में से एक संबंध को तोड़ लेता है. विशेषकर वे युवा जो अपने कॅरियर को ही अपनी प्राथमिकता देते हैं, उनके लिए संबंधों का टूटना बनना कोई बड़ी बात नहीं हैं. इसीलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले उसके सभी पक्षों और प्रभावों पर सोच-विचार करना बेहतर रहता है, ताकि आगामी जीवन में कोई समस्या विकसित ना हो सके.


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