“महिलाओं को ज्यादा बोलने की आदत होती है, वह किसी भी सीक्रेट को अपने तक नहीं तक रख पातीं. उन्हें अन्य लोगों को देखकर जलन भी बहुत होती है, वह दोस्ती भी बहुत नाप-तौल कर करती हैं.” प्राय: बहुत से लोग ऐसे ही विचार महिलाओं के बारे में रखते हैं. उन्हें लगता है कि दोस्ती का असली मतलब तो केवल पुरुषों को ही पता है क्योंकि वह हर घड़ी हर मौके पर अपने दोस्तों के लिए हाजिर रहते हैं. अगर आप भी बिना वजह महिलाओं के विषय में कुछ ऐसी ही धारणा रखते हैं तो आपको हाल ही में हुई एक रिसर्च पर एक बार अवश्य गौर करना चाहिए.
क्या कहती है रिसर्च
ब्रिटेन के वयस्क लोगों पर केंद्रित इस सर्वेक्षण में यह प्रमाणित हुआ है कि महिलाएं लंबे समय तक दोस्ती निभाने को लेकर पुरुषों से लगभग दोगुना ज्यादा संजीदा और समर्पित रहती हैं. डेली मेल में प्रकाशित इस रिपोर्ट का कहना है कि सर्वेक्षण में शामिल हर तीन में से एक महिला का कहना है कि उन्होंने अपने सबसे करीबी दोस्त स्कूल में बनाए जबकि छ: में से एक पुरुष ने ही यह बात स्वीकार की है क्योंकि उनके अनुसार विश्वविद्यालय और कार्यस्थल पर ही दोस्त बनाए थे.
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रिपोर्ट के अनुसार इस शोध में 2,000 लोगों को शामिल किया गया जिनमें से लगभग 37 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे अपने दोस्त कार्यस्थल पर ही बनाते हैं. जबकि उनकी फेसबुक में 50-100 दोस्त ही होते हैं. इतना ही नहीं अपने मोबाइल में भी वह 50 दोस्तों के नंबर को सेव रखते हैं. लेकिन वास्तविक दोस्तों की बात की जाए तो उन्हें यही लगता है वह इन सभी में से केवल 5 लोगों को ही अपना अच्छा दोस्त कह सकते हैं.
सर्वेक्षण में यह भी स्थापित किया गया है कि लगभग 13 प्रतिशत पुरुषों और 16 प्रतिशत महिलाओं ने यह बात स्वीकार की है उनकी फ्रेंडलिस्ट में एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसे वे बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकते.
उल्लेखनीय है कि इस अध्ययन के अनुसार यह भी प्रमाणित किया गया है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे दोस्तों की संख्या में भी कमी आने लगती है. एक युवा के जीवन में दोस्तों की संख्या ज्यादा होती है जबकि एक वृद्ध व्यक्ति के पास मात्र दो-तीन दोस्त ही होते हैं.
क्या भारत में भी ऐसे ही हालात हैं?
अगर भारतीय परिदृश्य के अनुसार इस शोध की स्थापनाओं को देखा जाए तो शायद हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि एक दौर था जब दोस्ती का दायरा बहुत विस्तृत हुआ करता था. दोस्ती का अर्थ समझने वाले लोग अपने दोस्ती को अपने जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं. चाहे वे महिला हों या पुरुष, दोस्ती के मर्म को समझते थे. लेकिन आज दोस्ती का अर्थ केवल अपने फायदे और सहजता से जोड़ा जाने लगा है. जब तक समय है या फिर अपना फायदा निकल रहा है तब तक तो दोस्त अच्छे लगते हैं लेकिन जैसे ही दोस्त आपसे कुछ उम्मीदें और अपेक्षाएं रखने लगता है तो वह दोस्ती सिर्फ बोझ बन जाती है, जिससे जल्द से जल्द पीछा छुड़वाया जाना ही बेहतर लगता है. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और समय की कमी के कारण दोस्तों की संख्या कम होती जा रही है. इसके अलावा सोशल नेटवर्किंग साइटों का प्रमुखता के साथ व्यक्ति के जीवन में शामिल हो जाना भी वास्तविक दोस्तों से दूरी बढ़ाता जा रहा है.
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