आमतौर पर यह माना जाता है कि विवाह के कुछ समय पश्चात ही महिलाओं में मां बनने की तीव्र इच्छा विकसित होने लगती है. वह अपने दांपत्य जीवन में बच्चे के आगमन को लेकर बहुत अधिक उत्साहित रहती हैं. इसके विपरीत पुरुषों के विषय में यह आम धारणा है कि वे संतान उत्पत्ति से कहीं ज्यादा तरजीह शारीरिक संबंधों को देते हैं. वह अपने वैवाहिक जीवन में ज्यादातर समय एक-दूसरे के साथ ही बिताना चाहते हैं. अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो हाल ही में हुआ एक अध्ययन आपको हैरत में डाल सकता है.
कानसास स्टेट यूनिवर्सिटी के एक शोध दल द्वारा कराए गए एक सर्वे ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बेबी फीवर यानी की बच्चे की ख्वाहिश केवल महिलाओं में ही नहीं बल्कि पुरुषों में भी समान रूप से विद्यमान होती है.
डेली मेल में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि वैवाहिक जीवन में संतान का जितना ज्यादा महत्व महिलाओं के लिए होता है उतना या उससे कहीं ज्यादा पुरुष भी बच्चे के लिए बहुत ज्यादा उत्साहित रहते हैं. अपने अध्ययन को व्यवस्थित रूप देने के लिए शोधकर्ताओं ने तीन मुख्य बिंदुओं को आधार बनाया है. पहला है सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू जिसके अनुसार एक वैवाहिक दंपत्ति इसीलिए संतान की चाह रखता है कि उसे अपने परिवार के बारे मे जानकारी दी जा सके, जिसके परिणामस्वरूप कई वर्षों तक लोग उस परिवार को याद रख सकें. दूसरा, अपने अंश की अवधारणा, जिसके अनुसार जब कोई महिला या पुरुष किसी सुंदर बच्चे को देखते हैं तो वह उसके प्रति खुद को आकर्षित महसूस करते हैं. वह चाहते हैं कि उनका अंश भी जन्म ले. तीसरा और आखिरी है भावनात्मक पहलू. इसके अनुसार मस्तिष्क का एक हिस्सा दूसरे हिस्से को यह संदेश देता है कि यह बच्चे के लिहाज से उपयुक्त समय है.
इस दल के मुखिया गेरी ब्रास ने जब यह प्रश्न लोगों के सामने रखा कि वे बच्चे की इच्छा, सेक्स और धन की लालसा को लोग किस क्रम में रखते हैं? तो उन्होंने पाया कि बेबी फीवर महिला और पुरुष दोनों में था लेकिन कुछ कारणों की वजह से पुरुष, बच्चों के जन्म के बाद उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, इस बात को लेकर थोड़े डरे हुए थे. हालांकि वह बच्चे को गोद में खिलाने और बांहों में भरने को लेकर उत्साहित थे. लेकिन उसका रोना, रात-रात भर जागना और उसके कपड़े बदलने जैसी चीजों की वजह से खुद को तैयार नहीं मानते. इसीलिए ज्यादातर वैवाहिक दंपत्ति केवल अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए ही बच्चे के पैदा होने का इंतजार करते हैं.
यद्यपि यह शोध विदेशी लोगों की मानसिकता पर आधारित है इसीलिए जरूरी है कि इसके नतीजों को भारतीय लोगों के साथ जोड़कर भी देख लिया जाए. भारतीय लोग हमेशा से ही भावुक प्रकृति के रहे हैं. महिला हो या पुरुष अपनी संतान के विषय में सोचकर ही काफी उत्साहित हो जाते हैं. वह अपने बच्चे को बोझ नहीं अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. अकसर देखा जा सकता है कि विवाह के एक या दो वर्ष बाद ही दंपत्ति संतान के विषय में सोचने लगते हैं. सिर्फ परिवार का नाम आगे बढ़ाने के लिए ही नहीं अपने अस्तित्व को भी संपूर्ण रूप देने के लिए वह बच्चे की ख्वाहिश रखते हैं. बदलते दौर के साथ यह इच्छा और अधिक तीव्र होने लगी है क्योंकि अब महिला-पुरुष कॅरियर का बेहतर निर्धारण ही दोनों की प्राथमिकता बन गई है. इसके परिणामस्वरूप वे दोनों ही जल्दी बच्चे की चाह रखते हैं. भारतीय परिदृश्य में भले ही मां को बच्चे के ज्यादा करीब दर्शाया गया हो, लेकिन पिता भी बच्चों से उतना ही लगाव और प्यार रखते हैं. इसीलिए हालांकि इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि शारीरिक संबंध भारतीय पुरुषों की प्राथमिकता में शामिल हैं, लेकिन वह भी पिता बनने के अहसास को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं. इसीलिए यह कहना कदापि सही नहीं कहा जा सकता कि पुरुष बच्चे को लेकर उत्साहित नहीं रहते.
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