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पुरुष के लिए साथी की भावना नहीं बल्कि खूबसूरती मायने रखती है

men and womenअगर आप यह सोचती हैं कि आपका साथी आपसे ताउम्र इतना ही प्यार करेगा, जितना वह आज करता है तो आपका यह भ्रम जल्द ही दूर होने वाला है. प्रतिष्ठित कॉस्मोपॉलिटन पत्रिका द्वारा एक शोध कराया गया जिसके नतीजों ने एक बार फिर पुरुष मानसिकता और अपने साथी के लिए उनकी भावनाओं पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. 70,000 पुरुषों पर कराया गय यह सर्वेक्षण यह प्रमाणित करता है कि पुरुषों आपसी भावनाओं और प्रेम से ज्यादा महत्व बाहरी आकर्षण और खूबसूरती को देते हैं. वह अपने साथी से तभी तक संबंध बनाए रखना चाहते हैं, जब तक वह सुंदर और आकर्षक हैं. भले ही महिला अपने पुरुष साथी के विषय में कितनी ही संजीदा क्यों ना हो, 48% पुरुषों का यही मानना है कि वह अपने साथी के मोटा हो जाने के बाद उसके साथ रहना पसंद नहीं करेंगे. इसीलिए अगर आप अपने प्रेमी से बेइंतहा प्यार करती हैं और चाहती है कि वह हमेशा आपके साथ रहे तो इसके लिए आपको अपनी सेहत और खूबसूरती को बरकरार रखने लिए बहुत मेहनत करनी पड़ सकती है.


यद्यपि विदेशी संस्थान हमेशा से ही मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन और महिलाओं-पुरुषों की गुप्त इच्छाओं तक अपनी पहुंच बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं. इसीलिए यह शोध यहीं समाप्त नहीं होता. इस सर्वेक्षण में पूछे गए सवालों के बाद यह बात भी निकलकर सामने आई है कि अधिकांश पुरुष यह मानते हैं कि 40 की आयु पार कर लेने के बाद महिलाएं अपनी खूबसूरती खोने लगती हैं. वहीं कुछ ने तो यह भी माना है कि 50 की उम्र में महिलाएं और अधिक आकर्षक लगने लगती हैं.


कहते हैं मानवीय जिज्ञासाओं का कोई अंत नहीं होता. यह सर्वेक्षण इसी का एक छोटा सा उदाहरण है. इस शोध की एक अन्य स्थापना आपको अचंभित करने के साथ-साथ थोड़ी अजीबो-गरीब भी लग सकती है. इस स्टडी के अनुसार पुरुष अकसर इस बात पर झूठ बोल जाते हैं कि वे अपने जीवन में कितनी महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बना चुके हैं. इसके अलावा वह अगर किसी महिला से केवल शारीरिक तौर पर आकर्षित होते हैं तो वह उसे यह बताने से भी नहीं हिचकिचाते.


लेकिन सबसे हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि पुरुष उन महिलाओं को ज्यादा भरोसेमंद समझते हैं जो अब तक 10 अलग-अलग पुरुषों के साथ संबंध स्थापित कर चुकी हों. वहीं महिलाओं को भी ऐसे पुरुष ज्यादा उपयुक्त लगते हैं जो 20 से ज्यादा महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बना चुके हों.


विदेशों में आपसी संबंधों को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया. वहां प्रेम और लगाव जैसी भावनाएं कोई खास महत्व नहीं रखतीं. इसीलिए यह शोध मात्र उनकी जीवन शैली से ही संबद्ध हैं, इसका उनके व्यक्तिगत जीवन और भावनात्मक संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन अगर भारतीय परिदृश्य में इन स्थापनाओं को देखें तो यह कहा जा सकता है कि नि:संदेह कुछ पक्षों पर महिलाओं के विषय में पुरुषों की मानसिकता एक समान होती है, लेकिन फिर भी भारतीय समाज में आज भी संबंधों की महत्ता कम नहीं हुई है. उम्र के जिस पड़ाव पर विदेशी पुरुषों को अपना साथी आकर्षक लगना बंद हो जाता है, उसी उम्र में भारतीय वैवाहिक जोड़े एक-दूसरे पर सबसे ज्यादा निर्भर रहने लगते हैं. उनकी आपसी समझ और भावनत्मक लगाव इस हद तक विकसित हो जाता है कि वे एक-दूसरे से दूर रहने के बारे में सोच ही नहीं सकते. हालांकि महिलाओं और पुरुषों की प्राथमिकताओं और मानसिकता में उतार-चढ़ाव आना कोई नई बात नहीं है लेकिन फिर भी उनके लिए अपने संबंध हमेशा प्रमुखता में ही रहते हैं. कुछ तथाकथित मॉडर्न विचारधारा वाले लोगों को अपवाद मान कर चला जाए तो शारीरिक संबंध हमेशा से ही एक व्यक्तिगत मसला रहे हैं. उनका सार्वजनिक प्रदर्शन भारतीय समाज में आज भी वहन करने योग्य नहीं समझा जाता. यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यक्ति चाहे खुद को कितना ही आधुनिक साबित करने पर क्यों ना तुला हो, लेकिन भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मान्यताएं उसे कुछ भी करने से पहले सोचने के लिए विवश जरूर करती हैं.


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