जब भी महिलाओं और पुरुषों के विषय में बात चलती है, कहीं ना कहीं यह सुनने को जरूर मिलता है कि पुरुष उन्हीं महिलाओं को अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहते हैं, जो अच्छा खाना बनाएं और उनकी सभी जरूरतों का ख्याल रखें.
यही कारण है कि भारतीय परिदृश्य में युवतियों को जन्म के साथ ही विवाह के लिए तैयार करने का कार्य शुरू हो जाता है. घरेलू कामकाज के साथ उन्हें यह भी भली-भांति सिखा दिया जाता है कि पति और ससुराल वालों की आज्ञा का पालन कर उनकी प्राथमिकताओं के अनुरूप कार्य करना ही एक विवाहित महिला का धर्म है. विवाह के पश्चात उसकी अपनी इच्छाएं पूरी हों या नहीं लेकिन पति की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए.
एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए यह मानसिकता उस समय सहायक सिद्ध हो सकती थी जब महिलाएं स्वयं को घर की चारदीवारी के भीतर ही सहज महसूस करती थीं, बाहरी दुनियां से उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं होता था. महिलाएं घर में ही रहकर परिवार का ध्यान रखती थी और पुरुष गृहस्थी की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाहर जाकर कार्य करते थे.
लेकिन समय के साथ-साथ सब कुछ बदल जाता है. आज महिलाएं आत्मनिर्भर बन अपने पैरों पर खड़ी हैं, पुरुषों के साथ एक ही क्षेत्र में काम कर रही हैं तो पुरुष भी महिलाओं के कॅरियर, उनकी अपेक्षाओं के प्रति जागरुक होने लगे हैं.
एक नए सर्वेक्षण ने यह प्रमाणित किया है कि वे महिलाएं जो अपने कॅरियर को लेकर सजग रहती हैं और ज्यादा से ज्यादा कमा सकती हैं, वही आज के पुरुषों की पहली पसंद हैं.
डेली मेल में प्रकाशित हुई इस अध्ययन की रिपोर्ट का यह भी कहना है कि अधिकांश पुरुष ऐसे भी हैं जो अपनी जीवन संगिनी के रूप में एक अच्छे सेक्स-पार्टनर की तलाश करते हैं.
लेकिन पुरुष चाहे मॉडर्न और खुले विचारों वाले हों या फिर परंपराओं के अनुरूप चलने वाले, लगभग सभी बढ़िया खाने के शौकीन होते हैं. इसीलिए इस सर्वे में शामिल तीन हजार पुरुषों में से शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने बढ़िया खाना और घर-परिवार की जिम्मेदारी को अपनी वैवाहिक प्राथमिकता में स्थान ना दिया हो.
विदेशी लोगों की प्राथमिकताओं पर आधारित यह शोध जहां एक ओर इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि अब महिलाओं का आत्मनिर्भर बनना स्वीकार किया जाने लगा है, वहीं यह बात भी नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि पुरुषों द्वारा ऐसी महिला की चाहत जो घर-परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी संभाले, महिलाओं के कार्यक्षेत्र और उनके उत्तरदायित्वों को अत्याधिक विस्तृत करती जा रही है.
भारतीय परिदृश्य में परिस्थितियां कुछ ज्यादा अलग नहीं हैं. उनका कार्यक्षेत्र भी अब दुगना हो गया है. महिलाएं जहां गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाने के लिए अपने पति को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं, वहीं उन्हें घर का काम और बच्चों की जिम्मेदारी भी अकेले ही उठानी पड़ती है. क्योंकि पुरुषों अब भी ऐसी ही मानसिकता से ग्रस्त हैं कि घर का काम करना उन्हें शोभा नहीं देता, अगर वह अपनी पत्नी के साथ घर के कामों में हाथ बटाएंगे तो यह उनकी प्रतिष्ठा को आहत करेगा.
जबकि पति-पत्नी दोनों का ही यह दायित्व बनता है कि हर संभव ढंग से वे दोनों एक-दूसरे की सहायता करें. पारस्परिक अपेक्षाओं और इच्छाओं को समझें, अपने संबंध के बीच किसी ऐसी मानसिकता को ना पनपने दें जो प्राथमिकताओं और झूठी शान के कारण रिश्तों में खटास पैदा कर दे.
Read Comments