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सीरत नहीं सूरत पर मरते हैं पुरुष !!

men likes flirtingपुरुषों के विषय में यह माना जाता है कि वह शारीरिक आकर्षण को अधिक महत्ता देते हैं. उनके लिए महिलाओं की सीरत, उनका स्वभाव कुछ खास मायने नहीं रखता. वह हमेशा उन महिलाओं में ही दिलचस्पी लेते हैं, जो देखने में बेहद आकर्षक हों, भले ही उनका स्वभाव रुक्ष और कठोर ही क्यों ना हों. ऐसा भी नहीं है कि वह उन्हें सुंदर और छरछरी काया वाली महिलाओं से प्रेम हो जाता हैं. वह तो सिर्फ आकर्षण के आधार पर उनसे जुड़ जाते हैं.


हाल ही में एक ब्रिटिश मैगजीन द्वारा कराए गए एक सर्वे पर गौर करें, तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अधिकांश पुरुष प्रेम जैसी भावनाओं को महत्व ना देकर, केवल शारीरिक आकर्षण को ही अपनी प्राथमिकता समझते हैं. इस सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश पुरुषों ने माना है कि उनकी प्रेमिका अगर सुंदर ना रही या मोटी हो गई तो निश्चित रूप से वे संबंध-विच्छेद कर लेंगे. इसके अलावा कई विवाहित पुरुषों ने इस बात को स्वीकार किया है कि चालीस की उम्र तक पहुंचने के बाद महिलाओं की सुंदरता समाप्त होने लगती है परिणामस्वरूप पति भी अपनी पत्नियों में दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं. इसके उलट कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 50 की उम्र में महिलाएं और अधिक आकर्षक लगने लगती हैं.


यह शोध महिलाओं और पुरुषों, दोनों पर कराया गया था. इसीलिए महिलाएं अपने साथी में कितनी और कब तक दिलचस्पी रखती हैं, यह जानना भी जरूरी हो जाता है. महिलाओं की बात करें तो यह स्पष्ट होता है कि अपने संबंध के प्रति महिलाएं कहीं अधिक संजीदा होती हैं. वह पुरुषों की अपेक्षा अपने साथी से भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ जाती हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं की सोच पुरुषों से बहुत अलग होती है. उन्हें अपना पति या प्रेमी ताउम्र अच्छा ही दिखता है. चाहे वह पहले जैसा रहे या ना रहे, उनके भीतर अपने प्रेमी के लिए लगाव कम नहीं होता. इसके अलावा अगर उनका साथी उन्हें दुख पहुंचाता है या धोखा देता है तो उनमें माफ करने की प्रवृत्ति भी पुरुषों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है.


यद्यपि यह शोध विदेशी पत्रिका द्वारा कराया गया है तो संभव है कि इसके नतीजे भी उन्हीं की जीवनशैली से संबंधित हों. लेकिन अगर हम इस सर्वे को भारत के संदर्भ में देखें तो यह बात नकारी नहीं जा सकती कि कहीं ना कहीं भारतीय पुरुष भी महिलाओं को लेकर ऐसी ही मानसिकता से ग्रस्त हैं. वह महिलाओं की सुंदरता को देखकर उनकी तरफ खिंचे चले जाते हैं. भौतिकवाद जैसी अवधारणा से खुद को संबद्ध किए भारतीय पुरुष महिलाओं के साथ भी वस्तु की भांति व्यवहार करते हैं. वहीं दूसरी ओर अधिकतर महिलाएं भी पुरुषों की ही तरह संबंधों से खिलवाड़ करना सीख गई हैं. वह भी संबंध के प्रति गंभीर ना रहकर उनका निर्वाह केवल तभी तक करती हैं, जब तक सब कुछ उनके ढंग से चले. हां ऐसे में उन युवतियों या महिलाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता जो आज भी समर्पण भाव से ओतप्रोत होती हैं और हर गलती के लिए अपने पति या प्रेमी को माफ कर पहले की ही तरह प्रेम करती हैं.


देखा जाए तो ऐसे शोध सिर्फ उन्हीं लोगों पर सटीक बैठते हैं, जिनके ऊपर यह किए जाते हैं. यद्यपि देश हो या विदेश व्यक्तियों की प्राथमिकताएं और उनके स्वभाव समान नहीं हो सकते. ऐसे में बहुमत को लेकर सब के ऊपर नतीजों को समान रूप से लागू करना तर्कसंगत नहीं हो सकता. समाज में मिश्रित स्वभाव के लोगों की वजह से परिस्थितियां भी समान और एकरूपता लिए नहीं हो सकतीं.


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