आमतौर पर यह मानते हैं कि माता-पिता का लाड़-प्यार बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है. जो अभिभावक अपने बच्चों के साथ सख्ती से पेश नहीं आते, उनके बच्चे बहुत जल्दी गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं या फिर गलत संगत में पड़ जाते हैं. इसके विपरीत जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ कठोर रहते हैं, उनके बच्चों के नकारात्मक परिस्थितियों से घिरने की संभावनाएं कम होती हैं. लेकिन एक नए अध्ययन ने अभिभावकों के कर्तव्यों को और अधिक विस्तृत कर यह प्रमाणित किया है कि माता-पिता को बच्चों के साथ एक संतुलित व्यवहार रखना चाहिए. उन्हें ना ज्यादा कठोर और ना ही उपेक्षित रहना चाहिए.
लंदन में हुए एक शोध के अनुसार बच्चों की आदतें और स्वभाव अभिभावकों के रवैये पर बहुत ज्यादा निर्भर करते हैं. यहां तक की बच्चे की शराब पीने की आदत का संबंध भी उसके और अभिभावकों के आपसी रिश्ते से ही है.
लगभग 15,000 विदेशी लोगों पर कराए गए इस अध्ययन के अनुसार वे अभिभावक जो बच्चों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं, उनके बच्चों में 16 वर्ष की आयु में शराब पीना शुरू कर देने की संभावना विकसित हो जाती है. यह संभावना 34 साल की उम्र के बाद दोगुनी हो जाती हैं.
द इंडिपेंडेंट में प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट की मानें तो, शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों के साथ प्यार से पेश आना और साथ ही उन्हें अनुशासन में रखना उन्हें शराब से दूर रखने में काफी मददगार साबित हो सकता है. वहीं दूसरी ओर वे अभिभावक जो बच्चों की परवरिश के लिए बड़े-बड़े मानदंड स्थापित करते हैं या उनके साथ तुलनात्मक व्यवहार करते हैं, आगे चलकर उनके बच्चे के शराब के आदी होने की आशंका अधिक होती है.
यह शोध ब्रिटेन के डेमोस नामक थिंक टैंक ने किया है. अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि जो अभिभावक अपने बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव तो रखते हैं, लेकिन उनके साथ ना तो पर्याप्त समय बिता पाते हैं और ना ही उनके लिए अनुशासन या नियम तय करते हैं, उनके बच्चे बहुत जल्दी अपने मार्ग से भटक जाते हैं. लेकिन बच्चों के साथ भावनात्मक लगाव ना रखना भी नुकसानदेह है.
इस अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चों को एक उज्जवल भविष्य देने में अभिभावक बहुत अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं. इसीलिए छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें डांटना या उनके साथ गलत व्यवहार करना, बच्चों को आपसे दूर ले जा सकता हैं. बेहतर है कि उचित आयु में उनके साथ दोस्ती का संबंध बनाए. डांटने से पहले उन्हें समझाएं. उन्हें अपनी गलती का अहसास करवाएं, ताकि आगे वह इस आदत को ना दोहराएं. किशोरावस्था उम्र का सबसे कठिन पड़ाव होता है. एक किशोरवय बच्चा वही करता है, जो वह अपने अभिभावकों और निकट लोगों को करते देखता है. इसके अलावा यह आयु बच्चे को बहुत जल्दी भटका भी सकती है. इसीलिए 15-16 साल की उम्र में उन पर नजर रखने की सलाह दी जाती है. अभिभावकों का भी यह दायित्व है कि वह अपने आचरण को परिष्कृत रखें और बच्चों के सामने शराब का सेवन ना करें.
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