अभी तक केवल इसी तथ्य को मान्यता प्रदान की गई थी कि बच्चों के विकास में सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियां बहुत प्रभावी सिद्ध होती हैं. इसके अलावा यह बात भी सर्वमान्य है कि बच्चा वही सीखता और करता है जो वह अपने माता-पिता से सीखता है. लेकिन एक नए शोध ने संतान के प्रति माता-पिता के उत्तरदायित्वों को और अधिक बढ़ा दिया है.
ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ने इस बात को प्रमाणित किया है कि भले ही आपकी तार्किक क्षमता और मानसिक दृड़ता आपकी व्यक्तिगत विशेषाताएं हों, लेकिन यह बहुत हद तक आपके जीन पर निर्भर करता है कि आप कितने प्रतिभावान हैं.
3500 से ज्यादा रक्त सैंपलों की जांच करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि व्यक्ति की आधी प्रतिभा उसे अपने जैविक माता-पिता से ही मिलती है, इसके अलावा अगर उसमें कोई प्रतिभा या खूबी नहीं है तो माता-पिता भी समान रूप से अपनी संतान के ऐसे व्यक्तित्व के लिए दोषी हैं.
इतना ही नहीं इस शोध ने कई हैरान कर देने वाले नतीजों को भी उजागर किया है. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों ने पाया कि सामान्य ज्ञान और दक्षता हासिल करने में माता-पिता के जीन लगभग 40 प्रतिशत भूमिका निभाते हैं, वहीं दबाव में निर्णय लेने या तर्क वितर्क करने की क्षमता में जीन की भूमिका इससे भी अधिक है. इसके अलावा कोई व्यक्ति अगर क्रांतिकारी विचारधारा वाला होता है या एक दायरे में रहकर सोचना उसे पसंद ना हो तो माता-पिता द्वारा प्राप्त जीन इसमें 51% भूमिका निभाते हैं.
विदेशी लोगों की जीवन-शैली को यह शोध कितना प्रभावित करेगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन भारतीय परिदृश्य के हिसाब से यह शोध बहुत सटीक है. यद्यपि पहले की अपेक्षा आज के समय में आपसी प्रतिस्पर्धा जैसी भावनाएं अत्याधिक बढ़ चुकी हैं. इसीलिए माता-पिता भी अपने बच्चे से यहीं अपेक्षा करते हैं कि उनका बच्चा सभी विषयों में खुद को साबित कर अपने माता-पिता का नाम रोशन करे. अपनी जिन इच्छाओं को वह स्वयं पूरी नहीं कर पाए, वह उसे अपने बच्चों द्वारा पूरा करना चाहते हैं. बच्चों से उनकी यह सभी अपेक्षाएं अपनी जगह सही हैं, लेकिन अकसर देखा जाता है कि बच्चे अगर पढ़ाई या अन्य गतिविधियों में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते तो माता-पिता उन पर अपना क्रोध बरसा देते हैं, उन्हें समझाए-बुझाए बिना डांट शुरू कर देते हैं. ऐसी परिस्थितियों में माता-पिता को परिपक्वता से काम लेना चाहिए. हालांकि इस शोध के नतीजे आपसी रिश्तों और माता-पिता के उत्तरदायित्वों को बहुत ज्यादा प्रभावित करने वाले प्रतीत नहीं होते. लेकिन फिर भी माता-पिता को चाहिए कि अगर उनका बच्चा कोई गलती करता है या पढ़ाई में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं कर पाता तो उस पर क्रोधित होने की जगह उसे समझाएं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें. इसके अलावा माता-पिता का तुलनात्मक रवैया भी बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव ही डालता है. इससे बच्चों के भीतर आत्म-विश्वास समाप्त हो जाता है, साथ ही वह स्वयं को अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों से कम आंकने लगते हैं.
ऐसे में अगर अपने बच्चों पर विश्वास कर उन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने का एक मौका दिया जाएग तो नि:संदेह यह बच्चों और अभिभावकों के आपसी रिश्ते को और मजबूत करेगा. साथ ही बच्चों को भी यह अहसास होगा कि उनके माता-पिता उनसे जो अपेक्षाएं रखते हैं, वह गलत नहीं है.
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