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अभिभावकों के प्रति समझें अपनी जिम्मेदारी

joint familyआमतौर पर यह माना जाता है कि वृद्धावस्था जीवन का सबसे बोझिल और नीरस पड़ाव होता है. क्योंकि यह वह समय होता है जब बुजुर्ग व्यक्ति बाहरी दुनियां से कट जाता है और पूरी तरह अपने परिवार के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करने लगता है. हर छोटे-बड़े कामों के लिए उसे पारिवारिक सदस्यों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. निजी स्वतंत्रता तो लगभग समाप्त ही हो जाती है. अगर आप भी ऐसी ही किसी मानसिकता के शिकार हैं और वृद्धावस्था में खुद के लिए ऐसे ही पराश्रित जीवन की कल्पना कर रहे हैं तो मायूस ना हों. क्योंकि हाल ही में हुआ एक शोध वृद्धावस्था के संबंध में समाज में व्याप्त इस मौलिक अवधारणा को गलत साबित करने के साथ-साथ आपके डर को भी कम कर सकता है.


इस सर्वेक्षण में आए नतीजों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि पचास की उम्र पार कर चुके व्यक्ति खुद को अधिक स्वतंत्र और पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त पाते हैं. खासतौर पर महिलाओं की बात करें तो जिनका अधिकांश जीवन अपने परिवार और बच्चों की देखभाल में ही बीत जाता है, वे भी इस अधेड़ अवस्था में अपने भीतर नवयौवन महसूस करती हैं. उनका मानना है कि बच्चों के विवाहोपरांत जीवन आत्मकेंद्रित होने के साथ-साथ सजीव भी हो जाता है. महिलाओं का यह भी मानना है कि बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के चलते वे अपने लिए समय नहीं निकाल पाती थीं, साथ ही बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने हमेशा अपनी इच्छाओं को दबाया ही है. और अब जब बच्चे अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह व्यस्त हो चुके हैं तो वे बेरोकटोक कुछ भी करने और कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं.


यद्यपि यह सर्वेक्षण एक विदेशी एजेंसी द्वारा कराया गया है, इसीलिए इसके परिणामों को भारतीय लोगों और उनके जीवन से जोड़ कर देखना न्यायसंगत नहीं होगा. पाश्चात्य देशों में रिश्तों और आपसी संबंधों के मायनें निम्नतम हैं. ये वह देश हैं जहां एक उम्र बाद बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहना तक पसंद नहीं करते. अवैध संबंध और भोग-विलास के प्रति अत्याधिक रूचि पूरी तरह से पाश्चात्य लोगों के जीवन पर हावी है. संबंधों का टूटना-बिगड़ना एक सामान्य घटनाक्रम है. अब ऐसी संस्कृति और मानसिकता वाले समाज में उत्तरदायित्व की भावना का जल्दी ही दम तोड़ देना स्वभाविक ही है. विवाहोपरांत तो बच्चे खुद को अपने परिवार और माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों से अलग ही कर लेते हैं. ऐसे में माता-पिता भी अपना अलग जीवन जीने और उसमें खुशियां तलाशने में खुद को व्यस्त कर लेते हैं. मनोरंजन के लिए नए-नए प्रयोगों का अनुभव किया जाने लगता है.


लेकिन भारत के संदर्भ में अगर बात की जाए तो यहां की परिस्थितियां विदेशों से मेल नहीं खातीं. यहां मनुष्य की पहचान ही उसके संबंधों से होती है. भारतीय लोगों के जीवन और उससे जुड़े घटनाक्रमों में संबंधों के महत्व को कभी भी कम नहीं आंका जाता. विदेशों में जहां व्यक्ति परिवार के भीतर भी व्यक्तिगत जीवन जीता है, वहीं भारत में परिवारिक जीवन आज भी पारिवारिक ही बना हुआ है. ऐसा भी नहीं हैं कि मनुष्य की अपनी वैयक्तिक इच्छाओं का कोई महत्व नहीं है. लेकिन अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए वह स्वयं ही अपनी इच्छाओं को उपेक्षित रहने देता है. भले ही आज बच्चे अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए अपने माता-पिता से दूर जाने के लिए विवश हो जाते हैं, लेकिन परस्पर उत्तरदायित्व की भावना माता-पिता और बच्चों को आपस में जोड़ कर रखती है. विवाहोपरांत बच्चे माता-पिता से अलग नई दुनियां नहीं बसाते बल्कि अपने नए परिवार को अभिभावकों के सानिध्य में रखते हैं.


हां, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पश्चिमीकरण के बढ़ते असर के कारण आजकल कुछ मात्रा में भारत में भी माता-पिता को अकेले और तन्हा रह कर तमाम समस्याएं भुगतनी पड़ रही हैं. स्थिति ये है कि उन्होंने ऐसी संतान को जन्म दिया है जो पैसे को ही अपना मानती है, माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझती. जिन-लोगों ने उसे काबिल बनाया वह उन्हें ही बोझ समझ उनसे छुटकारा पाना चाहती है. माता-पिता जो अपनी हर खुशी अपने बच्चों पर न्यौछावर कर देते हैं, उनके बलिदानों को वह भूल जाती है. शहरी क्षेत्रों में तो हालात और भी बदतर हैं. अभिभावकों को छोड़कर बच्चे कहीं दूर चले जाते हैं फिर कभी उनकी सुध लेने का प्रयत्न नहीं करते.


लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो पाश्चात्य देशों और भारत में सबसे बड़ी असमानता मानसिकता की है. पश्चिम में लोग अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को नहीं समझते और हमारा जीवन परस्पर भावनाओं और उनकी मजबूती पर ही आधारित है. विशेषकर माता-पिता और बच्चों का एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा कर सुखद जीवन की कल्पना करना संभव नहीं हैं. इससे सबक लेते हुए बच्चों को चाहिए की वे अभिभावकों को बोझ नहीं अपनी संपदा समझ उनके प्रति अपनी उत्तरदायित्वों का समर्पित भाव से पालन करें.


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