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सफल महिला के पीछे हाउस हसबैंड की भूमिका !!

एक पुरानी कहावत के अनुसार हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत होती है. लेकिन कभी किसी ने इस ओर ध्यान दिया है कि जो महिलाएं कामयाबी की बुलंदियों को छूती हैं, उनकी सफलता का श्रेय किसे जाना चाहिए?


house husband and working womanहेलेना मोरोसी नामक एक ब्रिटिश महिला, जो 500 अरब पाउंड की न्यूटन इंवेस्टमेंट कंपनी की मालकिन है, का कहना है कि उसकी कामयाबी का सारा श्रेय उसके हाउस हसबैंडपति को जाता है. इतना ही नहीं उसका यह भी सुझाव है कि जो महिलाएं अपने कॅरियर को लेकर गंभीर और संवेदनशील होती हैं, जो कामयाबी के शिखर तक पहुंचना चाहती हैं, उन्हें एक ऐसे पुरुष से शादी करनी चाहिए जो ना सिर्फ उन्हें प्रोत्साहित करे बल्कि परिवार और बच्चों की भी स्वतंत्र देखभाल करे. क्योंकि जब महिलाएं पारिवारिक झंझटों से मुक्त रहेंगी, तभी वे अपने कॅरियर पर ध्यान दे सकती हैं.


हेलेना का यह वक्तव्य प्रमाणित करता है कि अगर पुरुषों की कामयाबी में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तो एक सफल महिला के पीछे भी एक पुरुष अवश्य होता है. आधुनिक शब्दावली में हम ऐसे पुरुष को हाउस हसबैंडकी संज्ञा दे सकते हैं. एक ऐसा पुरुष जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ सिर्फ अपनी पत्नी के कॅरियर को ही प्राथमिकता दे. हालांकि अरबों की मालकिन हेलेना का यह भी मानना है कि ऐसा हमेशा जरूरी नहीं है कि हर सफल महिला के पीछे एक हाउस हसबैंड ही हो. लेकिन उसका यह भी मानना है कि अगर पुरुष थोड़ी सी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें, तो महिलाएं अपने कॅरियर पर अधिक ध्यान दे सकती हैं.


यद्यपि यह एक ब्रिटिश महिला का कथन है और वहां समाज से कहीं अधिक वैयक्तिक जीवन को अहमियत दी जाती है. ऐसे में संभव है विदेशों में हाउस हसबैंडजैसी भूमिका निभाना एक आम बात हो. लेकिन भारतीय संदर्भ में हाउस हसबैंड की कल्पना की जाए, तो भारत एक पुरुष प्रधान समाज है जहां महिलाओं और पुरुषों के कार्यों को पहले ही विभाजित कर दिया गया है. इसके अंतर्गत आजीविका कमा कर लाने का क्षेत्र पुरुषों के अधीन है और घर संभालने की जिम्मेदारी महिलाओं की. यहां उस पुरुष को भी घृणित दृष्टि से देखा जाता है जो अपनी पत्नी को आगे रखकर चलता है. ऐसे में अगर कोई पुरुष एक स्त्री की भांति घर संभालेगा, इसके उलट उसकी पत्नी बाहर जाकर कार्य करेगी तो समाज में उसका औचित्य ही समाप्त हो जाएगा. उसे ना जाने किन-किन लोगों की क्या-क्या बातें सुननी पड़ सकती हैं.


समय के साथ-साथ महिलाओं और पुरुषों के बीच कार्य विभाजन के स्वरूप में बदलाव आया है. लेकिन यह बदलाव सिर्फ एक तरफा ही है, क्योंकि आज महिलाएं भी काम करने बाहर जाती हों लेकिन उनके पति घर नहीं संभालते. महिलाएं बाहर काम करने के साथ-साथ घर के प्रति भी अपना जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक वहन करती हैं. हालांकि कुछ पुरुष हैं जो अपनी पत्नियों की घर के काम में सहायता करते हैं लेकिन उनकी संख्या नाममात्र की है.


इस परिदृश्य का एक और पहलू यह भी है कि बच्चों और परिवार के प्रति महिलाओं का जुड़ाव भावनात्मक रूप से अधिक होता है. उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता है कि उनकी व्यस्तता के चलते कहीं उनके बच्चे उपेक्षित ना रह जाएं. यह सोचकर भी वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को गौण कर अपना अधिकांश समय बच्चों की खुशियों और उनकी जरूरतों को ही पूरा करने में लगा देती हैं.


ऐसी भी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्होंने एक सफल मुकाम तो पा लिया, लेकिन उस ऊंचे शिखर पर वह अकेली रह गईं. हमारे देश की महिला मुख्यमंत्रियों की बात करें तो मायावती, जयललिता और ममता बनर्जी कुछ ऐसी ही उदाहरण हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि पुरुष समाज महिलाओं की भागीदारी का कितना ही समर्थन कर ले, लेकिन परिवार के भीतर उसकी कामयाबी को पचाया नहीं जाता. अगर कोई महिला महत्वाकांक्षी है तो हो सकता है उसे अपना लक्ष्य अकेले ही प्राप्त करना पड़े.


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