हमारे समाज (Society) में महिलाओं और पुरुषों की पारिवारिक जिम्मेदारियों(Responsibilities) को बराबर बांटा गया है. पुरुष बाहर जाकर आजीविका (Earning) कमा कर लाते हैं, और परिवार की आर्थिक जरूरतें (Financial Needs) पूरी होती हैं तो वहीं दूसरी ओर महिलाएं घर में ही रह कर अपने परिवार और बच्चों की देखभाल करके, अपना समय व्यतीत करती हैं.
समय के साथ-साथ इस पारिवारिक संरचना (Family Structure) में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव देखे जा सकते हैं. जिसके फलस्वरूप माता-पिता के उत्तरदायित्वों में भी कुछ हद तक परिवर्तन आया है. आज महिलाएं भी आत्मनिर्भर (Self Dependent) बन अपने पैरों पर खड़ी हैं. वह आर्थिक रूप से (Financially) भी अपनी और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में समर्थ हैं. घर संभालने के साथ-साथ वह काम के लिए बाहर भी जाती हैं.
यह बात सर्वमान्य है कि महिलाएं अपने बच्चों की भावनाओं (Emotions) को पुरुषों से ज्यादा अच्छे से समझती हैं. इसीलिए भले ही आज वह बाहर जाकर काम करती हों, जिसके चलते वह अपने बच्चों को पर्याप्त समय नही दे पा रही हों, लेकिन फिर भी वह अपने बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरूरतों को समझती हैं और साथ ही उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करती हैं.
जब बच्चा छोटा होता है तब उसके माता-पिता ही उसकी पढ़ाई-लिखाई आदि से संबंधित हर छोटे–बड़े फैसले (Decision) लेते हैं, लेकिन एक सर्वेक्षण (Research) के द्वारा यह बात सामने आई ह कि, शादी जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय भी, जबकि बच्चा इतना परिपक्व (Mature) हो जाता है कि वह अपना अच्छा या बुरा समझ सके, माता-पिता, खासकर माँ की भूमिका बेहद अहम रहती है.
इसका सबसे बड़ा कारण यह माना गया है कि माँ अपने बच्चे को करीब से जानती है, उसकी खामियों और खूबियों को वह बखूबी समझती है. और इसी आधार पर वह उसके लिए उचित जीवन साथी (Spouse) का चयन (Choose) करती है ताकि आगे चलकर उसका वैवाहिक जीवन (Married Life) खुशहाली में बीते.
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