स्त्रियां चूडियां क्यों पहने, कान क्यों छिदवाएं, नथ क्यों डालें, सिंदूर क्यों लगाएँ अक्सर प्रगतिशील विचारक और नारीवादी ऐसे सवाल उठाते रहे हैं. यहां मशहूर गीतकार गुलजार की यह नज्म गौर करने लायक है…
कितनी गिरहें खोली है मैने,
कितनी गिरहें अब बाकी है
पांव में पायल, हाथों में कंगन,
गले में हसली, कमरबंद,
छल्ले और बिछुए
नाक-कान छिदवाए गए हैं,
और जेवर-जेवर कहते-कहते
रित-रिवाज की रस्सियों से मैं
जकड़ी गई, उफ्फ कितनी तरह मैं पकड़ी गई।
क्या सचमुच औरतों का साजो-श्रृंगार एक बंधन है जिसे षड़यंत्र पूर्वक औरतों पर लाद दिया गया है ताकि उनकी गति अवरूद्ध हो जाए, वे पुरूष वर्चस्व वाले समाज में हमेशा-हमेशा के लिए पुरूषों पर आश्रित रहें या इसमें कहीं स्त्रियों का कल्याण भी छुपा हुआ है? हिंदू रीति-रिवाज की वैज्ञानिक व्याख्या करने वालों की माने तो हिंदू औरतों के हर श्रृंगार प्रसाधन के पीछे बड़े ही ठोस वैज्ञानिक कारण छुपें हैं और अंतत: इसका लाभ औरतों को ही होता है।
सिंदूर लगाने के क्या लाभ हैं?
क्या सिंदूर लगाने का एकमात्र उद्देश्य विवाहित और अविवाहित स्त्रियों में भेद करना है? आखिर क्यों जरूरी है एक विवाहिता के लिए सिंदूर लगाना? और एक कुंवारी लड़की सिंदूर क्यों नहीं लगा सकती?
इसके पीछे तर्क ये है कि सिंदुर लगाने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है और यौन इच्छा जागृत होती है. सिंदूर को बनाने में जिन तत्वों का प्रयोग किया जाता है उसमें हल्दी, चूना और पारा धातु शामिल रहती है. इन तत्वों में औषधीय गुण होता है. क्योंकि सिंदूर लगाने से कामोत्तेजना बढ़ती है इसलिए विधवाओं और कुंवारी स्त्रियों को सिंदूर लगाने की मनाही है. सिंदूर को पीयूषिका ग्रंथी तक लगाने से अधिक लीभ होता है. सिंदूर तनाव और अवसाद भी दूर करता है.
कान क्यों छिदवाए जाते हैं?
भारतीय परंपरा में कान छिदवाने का विशेष महत्व है. भारतीय चिकित्सकों और दार्शनिकों का मानना है कि बचपन में कान छिदवाने से बौद्धिक क्षमता, विचार करने की क्षमता और निर्णय लेने की क्षमता के विकास में मदद मिलती है. कान छिदवाने से व्यक्ति कम बोलता है जिससे बातुनीपन से बचने वाली उर्जा जीवन उर्जा में तब्दील हो जाती है. अब तो कान छिदवाने के लाभों के कारण पश्चिमी मुल्कों में भी यह परंपरा जोर पकड़ते जा रही है.
चूडियां क्यों पहनती हैं भारतीय औरतें?
मानव के शरीर में कलाई का हिस्सा अधिकांश समय सक्रिय रहता है. कलाई में पहनी जाने वाली चुड़ियां के निरंतर घर्षण से रक्त संचार में वृद्धि होती है. साथ ही चूड़ियों के गोलाकार होने के कारण बाहरी त्वचा से निकलने वाली विद्युत उर्जा दुबारा शरीर की दिशा में निर्देशित हो जाती है. चूड़ी का कोई छोर न होने के कारण उर्जा शरीर से बाहर नही जा पाती.
इसमें कोई शक नहीं की हर परंपरा के पीछे कुछ ठोस वैज्ञिनिक कारण गिनाए जा सकते है पर इस बात में भी कोई शक नहीं की यह परंपराएं कभी-कभी स्त्रियों के लिए बेड़ियां बन जाती हैं. वैसे भी आधुनिक जीवनशैली में हर एक रीति-रिवाज का महत्व महज प्रतिकात्मक रह गया है. समय बदलने के साथ इन परंपराओं का हुबहु निबाह करना संभव भी नहीं है. भारतीय स्त्रियों को इस बात की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे आधुनिक जीवनशैली और सदियों पुरानी इन परंपराओं में अपने सुविधानुसार संतुलन बैठा सके.
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