हमारे युवाओं की सोच अब पहले जैसी नहीं रही. वह अब किसी ऐसे बंधन में नहीं बंधना चाहते जिसमें वे ना तो एक दूसरे को पहले से जानते हों और ना ही एक दूसरे की आदतों से अवगत हों. इसीलिए वह परंपरागत शैली से विवाह करने की बजाय प्रेम विवाह को ही अहमियत देने लगे हैं. अभिभावक भी कुछ हद तक अपने बच्चों के इस निर्णय को समर्थन दे उनकी भावनाओं और अपेक्षाओं का सम्मान करने लगे हैं. परिणामस्वरूप आधुनिक होते हमारे भारतीय समाज में डेटिंग पद्वति बहुत ही कम समय में अपना औचित्य स्थापित कर चुकी है.
युवा वैवाहिक संबंध में बंधने से पहले डेटिंग कर एक दूसरे को जानने और समझने के बाद ही विवाह का निर्णय लेते हैं. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि डेटिंग के बाद यह कोई जरूरी नहीं है कि संबंध विवाह तक पहुंचे. युवापीढ़ी संबंधों के विषय में बेहद कैजुअल है. इसी कारण वह प्रेम संबंधों को अफेयर का नाम देकर उनकी अस्थिरता को पहले ही प्रमाणित कर देती है. डेटिंग का अर्थ है एक दूसरे से मिलना, समय बिताना और अगर सहमति बन जाए तो बात शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच जाती है.
कई ऐसी पत्रिकाएं और साइटें हैं जो व्यक्ति की डेटिंग को सफल बनाने के लिए मूल मंत्र देना अपना कर्तव्य समझती हैं. उनकी मानें तो पहली बार डेट पर जाने वाले जोड़े के बीच एक औपचारिक नजदीकी ही होनी चाहिए. रोमांस तक तो ठीक है, इससे ज्यादा निकटता संबंध को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकती है.
लेकिन एक नए शोध ने डेटिंग करने वाले जोड़े को यह सुझाव दिया है कि पहली डेट पर शारीरिक संबंध स्थापित किए जाए तो उन दोनों के बीच सार्थक संबंध स्थापित होता है. इसके अलावा हल्के-फुल्के रोमांस से संबंध शुरूआत धीमी रह जाती है.
इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ इओवा के अनुसार तो विवाह से पहले साथ रहना भी बहुत जरूरी है. यह उन महिलाओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है जो अपने जीवन साथी के रूप में मिस्टर राइट का इंतजार कर रही हैं.
युवाओं और प्रेम संबंधों से संबंधित कई किताबें लिख चुके बेथनी मार्शल का मानना है कि महिलाओं के लिए डेटिंग के परंपरागत और अनुशासित नियमों का पालन करना गलत साबित हो सकता है.
न्यूज डॉट कॉम को दिए गए इंटरव्यू के दौरान डॉ. मार्शल ने कहा कि महिलाओं का अनुशासन में रहना उन्हें अपने भीतर की आवाज सुनने नहीं देता.
समाजशास्त्र के सहायक प्रोफेसर एंथनी पायक का कहना है कि वर्तमान समय में पहली डेट में ही शारीरिक संबंध स्थापित कर लेना व्यक्तियों के जीवन का एक हिस्सा बन गया है. वह इसमें कोई बुराई नहीं मानते. इसके पीछे उनका तर्क है कि वह संबंध को अच्छी शुरूआत ना देकर उन्हें खराब नहीं करना चाहते.
लेकिन इन स्थापनाओं को नकारते हुए नेशनल सेंटर ऑफ हेल्थ स्टेटिस्टिक्स की रिपोर्ट ने यह दावा किया है कि विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाए बिना भी विवाह को सफल बनाया जा सकता है. आंकड़ों की मानें तो डेटिंग या लिव इन के बिना बनाए गए वैवाहिक संबंध ज्यादा सफल रहते हैं.
विदेशों में कराया गया यह शोध उनकी मानसिकता को साफ दर्शाता है. इस तथ्य में कोई संदेह नहीं किया जा सकता कि पाश्चात्य संस्कृति व्यक्ति को कुछ भी करने की खुली छूट प्रदान करती है. वहां संबंधों में शालीनता और भद्रता जैसी चीजें कोई मायने नहीं रखतीं. उनके लिए संबंध का निर्धारण शारीरिक संतुष्टि के आधार पर ही होता है. लेकिन भारतीय परिदृश्य में ऐसा नहीं है. यहां प्रेम को सदा ही एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है. इसीलिए प्रेमी जोड़े से सभ्य और शालीन व्यवहार करने की भी आशा की जाती हैं. प्रेम संबंधों की नियति एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने और सहज महसूस करने जैसे कारकों पर निर्भर होती है.
भारतीय लोगों की जीवन शैली में शारीरिक संबंध बहुत अहमियत रखते हैं. हमें इस बात को समझना चाहिए कि पहली मुलाकात में ही किसी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना उपलब्धि नहीं कहा जा सकता. भले ही ऐसे संबंध पूरी तरह से व्यक्तिगत और आम सहमति पर आधारित होते हैं लेकिन बेहतर होगा कि एक दूसरे को समझने और उचित समय साथ बिताने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचा जाए.
Read Comments