स्वस्थ शरीर के लिए पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. विशेषज्ञों का कहना है कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए दिन में 7 घंटे की नींद लेना बहुत जरूरी है. सामान्य तौर पर युवाओं और किशोरों को बहुत नींद आती है लेकिन प्राय: देखा जाता है कि 40-50 आयुवर्ग के लोग नींद ना आने या फिर बहुत कम देर तक सो पाने जैसी शिकायत करते हैं. दोस्तों के बीच बैठे हों या फिर परिवारवालों के, उनकी समस्या यही रहती है कि वह चैन की नींद लेने की जितनी मर्जी कोशिश कर लें लेकिन उन्हें नींद नहीं आ पाती. हैरानी की बात तो तब हो जाती है जब वह अत्याधिक थके होने के बावजूद नींद पूरी नहीं कर पाते और ना सिर्फ मानसिक तौर पर तनावग्रस्त रहने लगते हैं बल्कि उनकी शारीरिक थकान भी बढ़ जाती है.
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के बाद कम नींद आने जैसी बीमारी को एक गंभीर समस्या बताते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि 6 घंटे से भी कम देर तक सो पाने जैसी समस्या के चलते सामान्य शारीरिक भार वाले मध्यम आयु वर्ग के लोगों को हार्ट अटैक या दिल का दौरा पड़ने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है.
अमेरिका में हुए एक शोध पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने लगभग 3 वर्षों तक ऐसे 5,666 लोगों पर यह अध्ययन किया जिनके परिवार में कभी किसी को दिल का दौरा नहीं पड़ा था. इतना ही नहीं उनके पारिवारिक इतिहास में भी किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के लक्षण नहीं पाए गए थे.
बर्मिंघम स्थित अलबाना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शोध में शामिल स्वयंसेवकों में पहली बार हृदयघात और अवसाद के लक्षणों को पहचाना और जब इनका कारण पता लगाया गया तो सभी को नींद ना आने की शिकायत थी. शोधकर्ताओं ने यह पाया कि सामान्य भार वाले मध्यम आयु वर्ग के लोग अगर 6 घंटे से भी कम नींद लेते हैं तो अन्य खतरों के साथ उन्हें हृदयघात होने की संभावनाओं को भी बल मिलता है. हैरानी की बात तो यह है कि अत्याधिक वजन या फिर मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों के मामले में ऐसा कुछ भी प्रमाणित नहीं हो पाया कि उनके लिए भी कम नींद करना उतना ही घातक है जितना सामान्य भार वाले व्यक्तियों के लिए.
इस स्टडी के सह-लेखक और अलबाना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मेगन रुइटर का कहना है कि कम देर तक सोना शारीरिक समस्याओं को और अधिक बढ़ा देता है. इससे हृदयाघात की संभावना तो बढ़ती ही है साथ ही स्वास्थ्य संबंधी कई और जोखिमों में भी वृद्धि होती है.
उपरोक्त अध्ययन भले ही विदेशी लोगों और उनकी जीवनशैली पर आधारित है. लेकिन केवल इसी आधार पर शोधकर्ताओं की स्थापनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. भारतीय परिदृश्य में भी वह उनता ही महत्वपूर्ण है जितना किसी अन्य देश के लिए लिए. भारतीय प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में पहुंचने के बाद अधिकांशत: नींद ना आने की शिकायत तो करते हैं लेकिन अपनी इस समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं. जबकि उन्हें अपने स्वास्थ्य का महत्व समझना चाहिए और समय रहते अपना इलाज करवाना चाहिए.
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