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विकास के लिए जरूरी है किशोरों का गलत आचरण ग्रहण करना !!

teenagers drinkingआमतौर पर यह माना जाता है कि संतान के बेहतर भविष्य के लिए उसके चरित्र और आचरण की पूरी जिम्मेदारी अभिभावकों की ही होती है. विशेषकर किशोरावस्था उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जिसमें आगामी जीवन की नींव तो पड़ती ही है, साथ ही इस आयु वर्ग के बच्चे बहुत जल्दी भटक भी जाते हैं. उन्हें अपने परिवार से ज्यादा दोस्त प्रिय लगने लगते हैं. इसीलिए किशोरवय बच्चों के माता-पिता का यह दायित्व बन जाता है कि वह अपने बच्चों की हर छोटी बात, उसके व्यवहार पर पूरी निगरानी रखें, ताकि उनका बच्चा गलत आदतों का शिकार ना हो सके.


माता-पिता अपनी इन जिम्मेदारियों को समझते हैं, इसीलिए जब उनका बच्चा कोई गलत कार्य करता है तो वह उसे डांटते और कभी-कभार तो उस पर हाथ भी उठा देते हैं. लेकिन एक नए अध्ययन ने माता-पिता के इस व्यवहार को गैर जरूरी करार देकर, यह साबित कर दिया है कि किशोरावस्था में गलत आदतों को अपनाना एक स्वाभाविक और जरूरी लक्षण है. इसीलिए अभिभावकों को इसे जस का तस स्वीकार कर लेना चाहिए.


फिलाडेल्फिया स्थित टेम्पल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लॉरेंस स्टीनबर्ग का कहना है कि किशोरावस्था में स्वभाव का उग्र और आत्मकेंद्रित होना मानव-विकास का बेहद महत्वपूर्ण अंग है. यहां तक कि किशोरावस्था में ही शारीरिक संबंधों में लिप्त होना और नशीली दवाओं का सेवन जैसे जोखिम उठाना पूर्णत: जैविक मांग और कुछ हद तक अनिवार्य भी है. अभिभावक हो या कोई और किशोरों के इस स्वभाव को समाप्त नहीं कर सकता.


डेली मेल में प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट के अनुसार स्टीनबर्ग के नेतृत्व में हुए इस शोध में यह पाया गया कि लगभग 90% विद्यार्थियों ने स्कूल में रहते हुए ही ड्रग का सेवन और शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए थे. इनमें से अधिकांश किशोरों ने जहां असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाए, वहीं अत्याधिक शराब का सेवन और लापरवाही से गाड़ी चलाने जैसे अनैतिक अनुभव भी प्राप्त कर लिए थे.


मनोवैज्ञानिक जेसन चीन के सहयोग से प्रोफेसर स्टीनबर्ग ने एक और स्थापना की है, जिसके अनुसार ऐसे कार्यों के लिए जहां किशोर और वयस्क एकांत में खुद को सहज पाते हैं. वहीं युवा जब देखते हैं कि उनके दोस्त और अन्य लोग उन्हें देख रहे हैं तो वह जोखिम उठाने और उन्हें दिखाने के लिए और अधिक उत्साहित हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि दोस्तों के साथ रहना और उनके साथ समय बिताना सामाजिक रूप से अच्छा होता है इसीलिए उनका मस्तिष्क सार्वजनिक रूप से ऐसे कार्य करने के लिए उन्हें प्रेरित करता है.


इन सर्वेक्षणों को जानने और समझने से तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि पाश्चात्य लोग चाहे वे माता-पिता ही क्यों ना हों, वह अपने कर्तव्यों को कमतर करने और भविष्य की नींव समझे जाने वाले किशोरों के इस अभद्र आचरण को बढ़ावा देने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.


विदेशी लोगों की जीवनशैली इस हद तक आत्मकेंद्रित और मॉडर्न हो चुकी है कि वे अपना जीवन केवल खुद तक ही सीमित रखना ही बेहतर समझते हैं. उन्हें अपने बच्चों की जिम्मेदारियां भी बोझ लगने लगती हैं.


लेकिन भारतीय परिवेश में इस नए और आधुनिक सोच वाले शोध के कोई खास मायने नहीं हैं. अभिभावक प्रारंभ से ही अपने बच्चों पर पैनी नजर रखते हैं. विशेषकर पिता जिसे परिवार का संरक्षक माना जाता है वह किसी भी हाल में अपने बच्चे की गलत आदतों को वहन नहीं कर सकता. भले ही परिवार में पिता की छवि एक सख्त व्यक्ति की हो, लेकिन यह सख्ती और पाबंदी ही परिवार के छोटों को सही रास्ते पर रखने का काम करतीहैं.


हालांकि जबसे कंप्यूटर और सोशल नेटवर्किंग साइटों का भारत में आगमन हुआ है तब से हमारे युवाओं में भी भटकाव की स्थिति देखी जा सकती है. उचित आयु से पूर्व ही वह शारीरिक संबंधों और अनैतिक चीजों के विषय में जिज्ञासा रखने लगते हैं. जिनका अनुभव करने का वह एक भी मौका गंवाना नहीं चाहते. शराब और नशीले पदार्थों का सेवन करना, अश्लील हरकतें करना यह सब उनकी आदत और शौक बन जाते हैं. यह सब सही मार्गदर्शन ना मिलने के कारण ही होता है. ऐसी परिस्थितियों में अभिभावकों का दायित्व भी अत्याधिक बढ़ जाता है. उन्हें अपने बच्चे की हर गलत आदत और व्यवहार पर उसे समझाना चाहिए. हां, हर बार डांटने से भी एक समय बाद बच्चे पर प्रभाव पड़ना समाप्त हो जाता है, इसीलिए उसे सही समय पर इन सब चीजों के दुष्प्रभावों से अवगत कराना और उसे एक दोस्त की भांति समझाना ही बच्चों में विकसित हो रहे ऐसे स्वभाव को समाप्त करने का उपयुक्त तरीका है.


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