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रिश्ते की गंभीरता को बेहतर समझती हैं महिलाएं

हाल ही में कराए गए एक शोध (Research) से यह प्रमाणित हुआ है कि अपने रिश्ते (Relation) की गंभीरता को लेकर महिलाओं और पुरुषों की अपेक्षाओं (Expectation) में काफी हद तक अंतर (Differences) मौजूद रहता है. जहां एक तरफ पुरुषों की ओर से शारीरिक संबंधों (Physical Relationship) को अधिक महत्व दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर महिलाएं जल्द ही अपने साथी के साथ भावनात्मक रूप (Emotionally)  से जुड़ जाती हैं. इसके अलावा यह भी साबित हुआ है कि पुरुष किसी भी प्रकार की प्रतिबद्धता (Commitment)  से बचने के लिए अल्पकालीन संबंधों (Short-Term Relationship) को ज्यादा तरजीह देते हैं, लेकिन महिलाएं उन्हीं पुरुषों में अधिक रूचि लेती हैं जो अपने रिश्ते को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध (Committed) रहें.


man and womanयद्यपि यह सर्वेक्षण (Research) एक विदेशी एजेंसी द्वारा कराया गया है तो यह बात इतनी अहमियत नहीं रखती क्योंकि पाश्चात्य देशों (Western Countries) की संस्कृति (Traditions) काफी खुले विचारों वाली है. वहां संबंधों का टूटना-बनना आमतौर पर देखा जा सकता है. अत्याधुनिक हालातों में किसी भी संबंध का ज्यादा समय तक स्थिर (Stable) रह पाना थोड़ा मुश्किल ही रहता है. प्रेम संबंधों (Love relations) के अलावा पारिवारिक संबंध ( Family Relations)भी औपचारिकता (Formality)लिए होते हैं.


लेकिन यहीं बात अगर भारत जैसे परंपरावादी (Traditionally) और रूढ़िवादी सोच रखने वाले देश के संदर्भ में की जाए तो स्थिति थोड़ी जटिल हो सकती है. एक तरफ तो हमारे समाज (Society) में महिलाओं को सीमाओं (Limitations) और बंधनों मे बांध कर रखा गया है, वहीं दूसरी ओर पुरुषों के लिए ऐसी किसी सीमा रेखा का निर्धारण नहीं किया गया है, और यह इस बात को प्रमाणित करता है कि आज भी महिलाएं दोहरा जीवन जीने को मजबूर हैं.


प्रारंभिक काल से ही हमारे समाज में पुरुषों की सहूलियत के लिए बहु-विवाह(Polygamy), बेमेल विवाह आदि जैसी प्रथाएं चलाई जा रही हैं, यद्यपि आज इन प्रथाओं के स्वरूप में थोड़ा परिवर्तन जरूर आया है लेकिन यह बात नकारी नहीं जा सकती कि महिलाओं को आज भी एक भोग्या के रूप में देखा जाता है. कहीं न कहीं पुरुष आज भी महिला को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं, उसकी भावनाओं की परवाह किए बगैर सिर्फ अपने बारे मे सोचते हैं. आज भी प्रेम संबंध (Love relations) में पुरुष की ही प्रधानता ही रहती है, हमारे समाज (Society) ने उसे अपनी सहूलीयत के हिसाब से संबंध बनाने और तोड़ने की पूरी आज़ादी दी हुई है, वहीं किसी महिला द्वारा किए गए रिश्ते की पहल को गलत नज़रों से देखा जाता है.


एक ओर तो हम महिलाओं के उत्थान (Emancipation) के बारे में बात करते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर उनकी सामाजिक परिस्थितियों (Social Conditions) को बदलने से बचते हुए हम केवल उन्हें आर्थिक तौर ( Financially)  पर सशक्त ( Empower) करने की तैयारी करते हैं. जबकि यह बात सर्वमान्य है कि वास्तविक  उन्नति और सशक्तिकरण (Empowerment) तब तक संभव नही है जब आपको सम्मानपूर्ण (Respectable) सामाजिक परिस्थितियां (Social Conditions) न मिलें.


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