“भीडभाड़ वाले इलाकों में कोई दुर्घटना ना हो इसके लिए तीन प्रमुख कारक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पहला ड्राइवर की दक्षता, सड़क पर चलने वाली अन्य वाहनों के ड्राइवरों की समझ और भारतीय परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण कारक भाग्य”
अकसर यह देखा जाता है कि जब हम परिवार के साथ कहीं बाहर जाते हैं तो गाड़ी चलाने का जिम्मा पुरुषों को ही दिया जाता है. इसके अलावा अगर कोई महिला अकेली भी गाड़ी लेकर कहीं जाती है तो उसके परिवार वाले उसे काफी सारे निर्देश दे देते हैं कि गाड़ी तेज मत चलाना, आगे-पीछे देखकर चलाना, आने-जाने वालों को रास्ता देना इत्यादि. फिर भी कहीं न कहीं उन्हें यह डर सताता रहता है कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए. महिलाओं के विषय में यह आम धारणा बन चुकी है कि वह पुरुषों के समान एकाग्र होकर गाड़ी नहीं चला सकतीं. गाड़ी चलाते समय भी उनका ध्यान आस-पास की चीज़ों में लगा रहता है.
अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं कि महिलाएं चाहे कितनी ही योग्य क्यों ना हों, खुद को पुरुषों के बराबर साबित करने के लिए दिन-रात मेहनत क्यों ना कर रही हों लेकिन एक अच्छी ड्राइवर कभी नहीं बन सकती तो हाल ही हुआ एक सर्वेक्षण महिलाओं से संबंधित आपकी इस मानसिकता को आधार दे सकता है.
मिशिगन यूनिवर्सिटी द्वारा कराए गए इस शोध पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि महिलाएं चाहे खुद को कितना ही बेहतर चालक मानें, अपनी उपेक्षा करने वालों को कितना ही कोसें, लेकिन सच यही है कि अधिकतर सड़क हादसे तभी होते हैं जब वे स्वयं गाड़ी चला रही हों.
इस शोध के द्वारा जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं वह संभवत: हैरानी पैदा करने वाले हैं. लगभग साठ लाख दुर्घटनाओं को इस शोध का आधार बनाया गया जिसमें यह पाया गया कि इनमें से अधिकतर दुर्घटनाएं महिलाओं के बीच ही हुए हैं जबकि पुरुष महिलाओं से ज्यादा समय तक वाहन चलाते हैं. एक और तथ्य जो सामने आया है वो यह कि गाड़ी चलाते हुए महिलाएं सबसे ज्यादा चौराहों और टी-पॉइंट्स में उलझती हैं. इसके अलावा वह पार्किंग के मामले में भी बहुत लापरवाह होती हैं.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अधिकतर महिलाएं गाड़ी को मोड़ते समय घबरा जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके द्वारा कोई ना कोई गलती जरूर होती है. इतना ही नहीं, वह अपनी गलती मानने में भी बहुत आनाकानी करती हैं.
वैसे तो यह शोध एक विदेशी संस्थान द्वारा कराया गया है. इसीलिए इसे भारतीय महिलाओं के संदर्भ में देखना तर्कसंगत नहीं होगा. लेकिन अगर इस सर्वेक्षण को हम भारतीय परिदृश्य से जोड़ कर देखें तो यहां के हालात थोड़े भिन्न प्रतीत होते हैं. क्योंकि अव्वल तो यहां महिलाएं अकेले गाड़ी चलाने में सहज महसूस नहीं करती. हालांकि वे भी अब आत्म-निर्भर बन गई हैं और काम के लिए बाहर भी जाती हैं लेकिन अगर अकेले कहीं आना-जाना हो तो वह सार्वजनिक परिवहन का सहारा लेना ही उचित समझती हैं. वहीं, दूसरी ओर परिवार वाले भी चाहे वे पति हों या अभिभावक, महिलाओं पर इतना यकीन नहीं करते कि उन्हें अकेले गाड़ी देकर कहीं भी जाने को कह दें. हां, परिवार वालों की निगरानी में गाड़ी चलाने की स्वतंत्रता है उन्हें. लेकिन अगर ऐसी परिस्थितियों में भी कोई दुर्घटना हो जाए तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा क्योंकि अंत में भारतीय पूर्ण रूप से भाग्य पर ही निर्भर रहते हैं.
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