हमेशा से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमज़ोर माना जाता है, लेकिन जब कोई मुश्किल आती है तो महिलाएं पुरुषों से भी ज़्यादा चालाक और प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं.
शारीरिक बल से ज़्यादा ताकतवर मानसिक बल होता है और महिलाएं मानसिक बल की परिचायक होती हैं. शारीरिक बल और हिंसा में पुरुष महिलाओं से बहुत आगे होते हैं, और महिलाओं को अपनी इस कमजोरी का पता भी होता है. इसलिए वह मुसीबत के समय आक्रामकता को छोड़ चालाकी से काम करती हैं.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक जॉइस बनेंनसेन ने महिलाओं की इस चारित्रिक विशेषता को सिद्ध करने के लिए महिलाओं और पुरुषों दोनों को काल्पनिक सहयोगियों के खिलाफ एक खेल खेलने को कहा. शोध में शामिल लोगों को अकेले खेलने या प्रतिद्वंद्वी के साथ शामिल होने का विकल्प भी था. मनोवैज्ञानिक जॉइस ने इस खेल के परिणामों का विश्लेषण करके पाया कि जब तक इस खेल में सामाजिक बहिष्कार का कोई खतरा नहीं था तब तक खेल में शामिल पुरुषों और महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं था लेकिन जैसे ही सामाजिक बहिष्कार को इस खेल से साथ जोड़ा गया उनके बीच अंतर साफ़ था. सामाजिक बहिष्कार को खेल में शामिल करते ही पाया गया कि महिलाएं प्रतिद्वंद्वी के साथ मिलकर अपने साथी को बाहर करने के मामले में पुरुषों से ज़्यादा आगे थीं.
बनेंनसेन के अनुसार पुरुषों और महिलाओं का सामाजिक संसार एक-दूसरे से अलग होता है. जहां महिलाएं अलगाव की भावना से चिंतित होती हैं वहीं पुरुष किसी के द्वारा पीटे जाने से ज़्यादा चिंतित होते हैं. महिलाएं अपनी प्राथमिक प्रतियोगी रणनीति के रूप में गठबंधन की नीति अपनाने में ज़्यादा विश्वास करती हैं जबकि पुरुष अपने प्रतिद्वंद्वी पर हावी होने की कोशिश करते हैं. शायद पुरुषों को पता नहीं है कि जो काम पिटाई नहीं कर सकती वह काम दिमाग से आसानी से हासिल किया जा सकता है.
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