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आखिरकार क्यों पुतले के साथ रोमांस करने को मजबूर हुई यह महिला

एक महिला जिसके दिल में रोमांस करने की कोई तमन्ना नहीं फिर क्यों उसे मजबूर होकर एक पुतले के साथ रोमांस करना पड़ा! दरअसल एक आर्टिस्ट अपने आर्ट के नजरिए से ही पूरी दुनिया को देखने और समझने का दावा करता है इसलिए अमेरिकन महिला सुजान्ने हेन्ट्ज ने भी यह सोच लिया था कि समाज द्वारा बनाए गए रिश्तों का कोई महत्व नहीं है और उनका आर्ट ही उनकी जिंदगी है.


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सुजान्ने हेन्ट्ज समाज से दूर अपनी जिंदगी के हर एक लम्हें को जी रही थीं पर एक दिन उनकी मां ने सुजान्ने की शादी कराने की रट लगा ली इसलिए सुजान्ने को मजबूर होकर कोई ऐसा तरीका खोजना पड़ा जिससे कि वो अपनी मां को यह साबित कर सकें कि परिवार के बिना भी जिंदगी को एजॉय किया जा सकता है. उसी रात जब सुजान्ने सड़क पर टहलने के लिए निकलीं तो एक दुकान पर बिक्री के लिए रखे पुतलों पर उनकी नज़र पड़ी. इसके बाद सुजान्ने ने महसूस किया कि वो एक परिवार खरीद भी सकती हैं. इसके साथ हुई सुजान्ने की अपने आर्टिफीशियल पति के साथ रोमांस की शुरुआत. असल चीजों की जगह उन्होंने तय किया कि वो पुतलों के साथ फोटोग्राफी कर एक परिवार के एहसास को महसूस करेंगी इसलिए सुजान्ने ने अपने परिवार के साथ 16 हजार किलोमीटर की यात्रा पर निकलने का फैसला लिया.

ऐसा क्या ज़िक्र किया था जिया ने सुसाइड से पहले!


सुजान्ने की 16 हजार किलोमीटर की यात्रा का अंत 14 सालों में हुआ. इन 14 सालों में सुजान्ने ने दो पुतलों के साथ अपनी जिंदगी व्यतीत की. इसमें एक पुतला उनका पति चॉन्सी था और दूसरा उनकी बेटी मैरी का पुतला था. जब भी सुजान्ने अपनी जिंदगी के उन 14 सालों का जिक्र करती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे वो समाज के रीति-रिवाजों के विरोध में अपना गुस्सा प्रकट कर रही हों. सुजान्ने हेन्ट्ज का मानना है कि आखिरकार क्यों एक लड़की की जिंदगी बिना शादी किए पूर्ण नहीं मानी जाती है ? सुजान्ने की जिंदगी में एक नहीं बल्कि कई ऐसे लड़के आए जिनसे उन्हें प्यार हुआ पर कभी भी शादी का विचार उनके मन में नहीं आया.


क्या पुतलों के साथ जिंदगी व्यतीत की जा सकती है ?

सुजान्ने ने अपनी जिंदगी के 14 साल दो पुतलों के साथ गुजारे और उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि अपनी जिंदगी के हर एक लम्हें को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ बांटने में एक अलग ही मजा होता है. यदि सुजान्ने इन पुतलों के बदले किसी इंसान के साथ अपनी जिंदगी के खास पलों को शेयर करतीं तो उन्हें इस बात का एहसास हो पाता कि पुतलों के बदले इंसान के साथ अपने सुख-दुख को शेयर करना ज्यादा बेहतर है क्योंकि इंसान आपकी बातों पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है पर एक पुतला नहीं. यदि आपको भी सुजान्ने की तरह किसी पुतले के साथ कुछ साल व्यतीत करने का मौका दिया जाए तो क्या आप इस मौके को अपनाएंगे ?


इस तस्वीर में आखिरी रंग मैं ही भरूंगा

जब जन्मतिथि ही मृत्यु दिन में बदल गई !

अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है

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