महिलाओं का एक वर्ग जो शहरी जन-जीवन से प्रभावित है यह जान कर अचंभित होगा कि पुरुषों को घर के कामकाज करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है. पुरुष इसे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. पुरुष यह समझते हैं कि उनका जन्म इस संसार में बड़े कामों के लिए हुआ है, उनका मानना है कि वे केवल युद्ध को लड़कर विभिन्न राज्यों पर कब्जा कर सकते हैं, इसके विपरीत यदि वे महिलाओं के कामों को करते हैं तो यह उनकी मर्दानगी पर अत्याचार होगा, इससे वे अपनी अंतरात्मा को नाराज करेंगे.
इस शोध को यदि हम भारतीय संदर्भ में देखें तो यह वास्तव में ही पुरुषों की शान के खिलाफ है और भारतीय पुरुष समाज इसे कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता है. भारतीय पुरुष वर्ग संस्कृति और मर्यादा की दुहाई देने लगता है. वह तो यह भी कहता है कि महिलाएं केवल घर के कामकाज के लिए बनी हैं और पुरुषों के जिम्मे बाहर के काम को देखना है. यदि भारतीय समाज में पुरुष इस तरीके का काम करते हैं तो इस समाज के नुमाइंदे उसे नीची नजर से देखते हैं और उसका तिरस्कार करने लगते हैं. पुरुषों द्वारा महिलाओं के कामकाज को न करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. हमारे धर्मग्रंथों, वेदों, उपनिषदों में भी महिलाओं के कामकाज को केवल उन्ही तक सीमित रखा गया है.
आधुनिक समाज में भी पुरुषों ने महिलाओं के कामकाज को न करने की प्रथा को बरकरार रखा है. कुछ गिने चुने शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, पुणे और बंगलुरू के कुछ भागों में इस प्रथा के अपवाद पाए जा सकते हैं, जहां पर दो कामकाजी जोड़े पति और पत्नी एक-दूसरे की सहायता करने में परहेज नहीं करते. इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं यथा, समय की कमी व पति और पत्नी के बीच बढ़ती नजदीकियां. कारण कुछ भी हो लेकिन इस प्रथा को अपनाए जाने की बात करें तो कुछ गिने-चुने एकल परिवार ही इसे सही मानते हैं. जहां पर पुरुष महिलाओं के कामकाज को बेहद पसंद करता है लेकिन इसमें भी वह दिनचर्या की तरह इसे नहीं अपनाता.
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