कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है अतः सभी को समय के साथ बदलना चाहिए. लेकिन क्या यह हमेशा सही होता है.
दशकों पूर्व महिलाओं के चित्रण में था कि वे अपने लिए ऐसा वर चुनती हैं जो ज़्यादा पढ़ा-लिखा हो और जो ढेर सारा कमाता हो. समय बदला और महिलाओं में भी बदलाव आया. आज महिला सिर्फ एक गृहणी नहीं रह गयी जिसका काम केवल खाना पकाना और बच्चों की देखभाल करना हो. आज महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला सभी क्षेत्रों में कार्यरत हैं. लेकिन क्या समय के साथ महिलाओं के अपना वर चुनने की मानसिकता में बदलाव आया है. हम कह सकते हैं कि आया तो है लेकिन सभी विभागों में नहीं. महिलाएं आज भी पैसे और पढ़ाई को सर्वोच्च मानती हैं. इस तथ्य का मुख्य कारण है महिलाओं का आचरण जो सदियों बाद भी बदला नहीं है. महिलाएं अभी भी यह स्वीकार नहीं कर पाई हैं कि वह अकेले भी सभी कार्यों को सुचारू ढंग से कर सकती हैं और किसी भी कार्य के लिए उन्हें पुरुषों पर आश्रित होने की ज़रूरत नहीं.
जाने–माने विशेषज्ञ ‘हकीम’ का कहना है कि 40 वर्षों के रिफॉर्म के बाद भी महिलाएं अभी भी आर्थिक रूप से पुरुषों पर आश्रित हैं.
इसके अलावा हकीम का यह भी कहना था कि यह धारणा केवल कुछ देशों में व्याप्त नहीं है बल्कि विश्व के अधिकांश देशों में महिलाओं का यही आचरण है.
अगर आप 1949 के एक शोध के परिणामों पर नज़र डालते हैं तो उस समय लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं ने अपने से अधिक पढ़े–लिखे पुरुषों से शादी की थी जबकि 1990 में यह आंकड़े बढ़कर 38 प्रतिशत हो गए.
हकीकत यह है कि अधिकतर महिलाएं यह मानने को तैयार नहीं होतीं कि वह अपना पति अपने से अधिक पढ़ा–लिखा और ज़्यादा कमाने वाला ढूंढ़ रही थीं. वास्तव में यह एक समस्या है क्योंकि महिलाएं अगर अपनी गलती मानेंगी ही नहीं तो वह उसे सुधार भी नहीं सकतीं.
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