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आपसे कहीं अधिक मेहनत करती है मां !!

busy housewifeआमतौर पर यह माना जाता है कि जो लोग घर से बाहर जाकर कार्य करते हैं, असली मेहनत सिर्फ वही करते हैं. गृहणियों के बारे में तो यह आम धारणा बन चुकी है कि उनका काम घर में बैठकर सिर्फ टी.वी देखकर अपना टाइमपास करना ही होता है. गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाने और आपकी जरूरतों को पूरा करने में उनके योगदान और महत्व को पूर्ण रूप से गौण कर दिया जाता है.


अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं कि आपकी ‘होममेकर’ मां के पास परिवार के लिए खाना बनाने से अधिक और कोई काम नहीं होता और वह पूरा दिन या तो टी.वी देखती हैं या फिर सो जाती हैं, तो हाल ही में हुआ एक शोध आपकी इस भ्रांति को दूर कर सकने में काफी हद तक सहायक हो सकता है.


ब्रिटेन में कराए गए एक सर्वेक्षण पर नजर डालें तो यह प्रमाणित हो जाता है कि जहां एक नौकरी पेशा व्यक्ति दिन में 7-8 घंटे काम करता है, वहीं मांएं दिन के दस घंटे सिर्फ अपने परिवार और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में ही लगा देती हैं. इसमें खाना बनाना, बच्चों का होमवर्क कराना, घर को संभालना आदि काम सम्मिलित होते हैं. इतना ही नहीं, अत्याधिक व्यस्तता के चलते उनके पास खुद के लिए समय तक नहीं बचता. यहां तक की सोने और आराम करने के लिए उन्हें सिर्फ छ: घंटे ही मिल पाते हैं.


शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपनी इस दैनिकचर्या से त्रस्त आ चुकी हैं. वह चाहती हैं कि उन्हें अपने लिए थोड़ा समय तो मिलना ही चाहिए. वहीं कई समर्पित माएं ऐसी भी हैं जो अपनी ऐसी दिनचर्या से खुश हैं. उन्हें सिर्फ बच्चों और घर को संभालने में ही आनंद आता है.


यद्यपि यह शोध एक विदेशी संस्थान द्वारा कराया गया है, जहां परिवारिक सदस्यों की संख्या तो सीमित होती ही है, साथ ही बच्चों के प्रति वह केवल तभी तक उत्तरदायी होती हैं जब तक बच्चे चाहते हैं. क्योंकि प्राय: एक उम्र बाद बच्चे अपने माता-पिता से अलग रहने चले जाते हैं. इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि विदेशी महिलाओं की पारिवारिक व्यस्तता केवल एक समय तक ही निर्धारित होती है. उसके बाद वह व्यक्तिगत रूप से कुछ भी करने और कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हो जाती हैं.


लेकिन अगर इस शोध को भारतीय जीवनशैली और पारिवारिक परिस्थितियों से जोड़कर देखा जाए तो भारतीय समाज में संयुक्त और एकल परिवार दोनों ही प्रकार की पारिवारिक संरचना देखी जा सकती है. इसीलिए यहॉ पारिवारिक सदस्यों की संख्या निर्धारित नहीं हो सकती. परिणामस्वरूप गृहणियों की दिनचर्या और अधिक व्यस्त होने की संभावना कहीं गुना तक बढ़ जाती है. प्राय: महिलाएं सिर्फ अपने घर और बच्चों को संभालने में ही सारा समय व्यतीत कर देती हैं.


पाश्चात्य और भारतीय परिवारों के बीच एक और बड़ा अंतर यह भी है कि यहां बच्चे अपने अभिभावकों से अलग ना होकर अपना सारा जीवन उनके सानिध्य में ही व्यतीत करना चाहते हैं. यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि बच्चों के प्रति अभिभावक केवल सीमित समय तक ही उत्तरदायी रहेंगे. माता-पिता अपना जीवन बच्चों की जरूरतों और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने में ही समर्पित कर देते हैं और उन्हें इस बात से कोई गुरेज भी नहीं होता. इसके विपरीत वह तो उन्हीं बच्चों और परिवार की देखभाल करने में ही अपनी खुशी ढूंढ़ते हैं.


मां अपने बच्चों के लिए इतना कुछ करती है, लेकिन फिर भी बच्चे उनके परिश्रम को महत्व नहीं देते. अगर कभी किसी कारणवश खाना समय पर या आपकी पसंद अनुसार ना मिल पाए, या फिर आपकी कोई मांग पूरी कर सकने में आपकी मां असमर्थ हो, तो उसे यह सुनाया जाता है कि “आप पूरा दिन करती क्या हो?” हमें यह समझना चाहिए कि हमारी मां हमारे लिए जो भी परिश्रम करती है, वह उसके लिए कोई मांग नहीं रखती. वह आपसे भावनात्मक रूप से प्रतिबद्ध है. उन्हें आपके लिए काम करने में खुशी मिलती है. वह सिर्फ आपसे बस थोड़े से प्रोत्साहन की ही उम्मीद रखती है.


अब अगर अगली बार आप यह सोचें की आपकी मां सिर्फ घर में बैठ कर टाइमपास ही करती हैं और काम तो बस आप करते हैं तो एक बार इस ओर ध्यान अवश्य दें कि उनके द्वारा किए गए छोटे-छोटे कामों की संख्या और घंटे आपसे कहीं अधिक हैं. और आप तो शायद हफ्ते में छ: दिन ही काम करते हैं लेकिन आपकी मां तो पूरे हफ्ते आप की सेवा में ही लगी रहती हैं.


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