हाल ही में नेहा का अपने 4 साल पुराने ब्वॉयफ्रेंड रोहन से ब्रेक-अप हो गया. जब दोनों के अफेयर की शुरुआत हुई थी तब तो सब ठीक था लेकिन समय के साथ-साथ नेहा और उसके ब्वॉयफ्रेंड में प्रॉब्लम आने लगीं. बढ़ती गलतफहमियों और आपसी समझ विकसित ना हो पाने के कारण दोनों ने आपसी सहमति के साथ एक-दूसरे से अलग होने का निर्णय ले लिया. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि भावनात्मक तौर पर वे दोनों एक-दूसरे से बहुत जुड़ चुके थे जिसकी वजह से आज उनके लिए ब्रेक-अप का दर्द सहन करना मुश्किल हो रहा है. नेहा तो रो-रोकर अपना दर्द बयां कर देती है लेकिन रोहन किसी को कुछ नहीं कह पाता और अंदर ही अंदर घुटता रहता है.
ऐसा ही कुछ हाल मनीष का भी है. उसका अपनी पत्नी से तलाक हो गया लेकिन अपने वैवाहिक जीवन से जुड़ी यादों को भूलना उसके लिए असंभव सा हो गया है. वह भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर होता जा रहा है.
आमतौर पर महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कहीं ज्यादा संवेदनशील और भावुक माना जाता है. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन का कहना है कि भले ही दुख और तकलीफ के क्षणों में महिलाएं खुद को संभालने में सफल हो जाती हैं लेकिन इस मामले में पुरुषों का भी कोई जवाब नहीं है. अगर ऐसा भी कहा जाए कि पुरुष दर्द छिपाने में महिलाओं से ज्यादा आगे रहते हैं तो भी गलत नहीं होगा.
हम ऐसा मानते हैं कि महिलाएं अपने दुख को सहने और फिर भी धैर्य रखने में प्राकृतिक रूप से पारंगत होती है लेकिन लीड्स मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी द्वारा संपन्न इस अध्ययन की मानें तो पुरुष इस मामले में ज्यादा बेहतर साबित होते हैं. वह तकलीफ सहन करने के बावजूद कभी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं आने देते.
यूनिवर्सिटी के दर्द विषय की विशेषज्ञ डॉ. ओसामा तशानी ने 200 ब्रिटिश और लीबियाई स्वयं सेवकों को अपने अध्ययन में शामिल कर यह प्रमाणित किया है कि महिलाएं दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं लेकिन पुरुष अपनी भावनाओं को छिपाने और दर्द सहने की हिम्मत उनसे ज्यादा रखते हैं.
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उपरोक्त अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो यह बात सच है कि भारतीय महिलाओं में सहनशीलता की कोई कमी नहीं होती. वह दर्द सहकर चुप रहना भी जानती हैं. लेकिन एक और बात जो बिल्कुल नजरअंदाज नहीं की जा सकती वो यह कि सहनशीलता महिलाओं या पुरुषों से ज्यादा व्यक्तिगत तौर पर निर्भर करती है. बहुत से लोगों का स्वभाव होता है बहुत कुछ सहन करने के बाद भी चुप रहना. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हर छोटी बात को जाहिर करने में ही सहज महसूस करते हैं.
इस खूबी के लिए विशेष तौर पर महिलाओं और पुरुषों के आधार पर वर्गीकरण करना सही नहीं ठहराया जा सकता फिर वो चाहे भारतीय समाज में रहने वाले लोग हों या फिर विदेशी समाज में. व्यक्तिगत तौर पर सभी का स्वभाव अलग होता है और सहनशील होना या ना होना व्यक्तिगत खूबी ही है.
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