आमतौर पर यह माना जाता है कि भले ही पुरुष शारीरिक संबंधों के प्रति अधिक उत्सुक रहते हों लेकिन फिर भी महिलाओं में संबंध स्थापित करने की इच्छा पुरुषों से कहीं ज्यादा तीव्र होती है. कभी अपनी सीमाओं को समझते हुए तो कभी पारिवारिक और सामाजिक बंधनों के कारण वह अपनी इच्छा को जाहिर नहीं कर पातीं.
लेकिन हम इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि कुछ ऐसे महिला और पुरुष भी होते हैं जो अपने मौलिक स्वभाव से इतर व्यवहार करते हैं. उदारहण के तौर पर देखा जाए तो कुछ पुरुष ऐसे भी होते हैं जो भले ही सेक्स के प्रति हमेशा उत्तेजित रहते हों लेकिन वह उतने ही कामुक भी होते हैं जितना केवल एक महिला से ही अपेक्षा की जा सकती है.
हाल ही में कुछ प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने पुरुषों के इस बदले हुए व्यवहार को समझने के लिए एक शोध संपन्न किया. इस शोध के नतीजे यह कहते हैं कि महिलाओं के डीएनए में कुछ अतिरिक्त गुणसूत्र होते हैं. अगर वैसे ही गुणसूत्र किसी पुरुष के डीएनए में शामिल हो जाएं तो वह भी महिलाओं की ही तरह शारीरिक संबंधों में कहीं अधिक दिलचस्पी लेने के साथ-साथ उनकी तरह कामुक व्यवहार करने लगेगा.
इस शोध को संपन्न करने के लिए वैज्ञानिकों ने हमेशा की तरह चूहों का सहारा लिया. चूहों में तो यह नतीजे शत-प्रतिशत सही साबित हुए.
वाह !! क्या रिकॉर्ड बनाया है
शोधकर्ताओं के अनुसार डीएनए में मौजूद गुणसूत्र एक लंबे तार की तरह होते हैं. इन तारों में कई जीनों का समावेश होता है. इंसानी शरीर में गुणसूत्र के 23 जोड़े होते हैं और इनका एक सेट प्रत्येक माता-पिता से विरासत में मिला होता है. महिलाओं में दो एक्स गुणसूत्र होते हैं, जबकि पुरुषों में एक्स और वाई दो गुणसूत्र पाए जाते हैं.
हार्मोन एंड बिहेवियर नामक पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार भले ही यह अध्ययन चूहों पर किया गया हो लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि लिंग का पता लगाने वाले जीन मनुष्य सहित सभी स्तनधारियों में एक समान होते हैं, इसलिए इन नतीजों को मनुष्यों पर भी लागू किया जा सकता है. वैज्ञानिकों को इन नतीजों में कोई संदेह नहीं है इसीलिए वे इसे व्यवहारिक मान कर चल रहे हैं.
यह रिसर्च केवल क्लाइनफेल्टर्स सिंड्रोमवाले पुरुषों, जिनमें एक अन्य एक्स गुणसूत्र होता है, पर ही लागू होते हैं.
वैसे तो विदेशों में ऐसे एक नहीं बल्कि अनगिनत अध्ययन होते रहे हैं जिनका संबंध या तो महिला और पुरुष के बीच निजी संबंधों से है या फिर साफ तौर पर वह सेक्स पर ही केन्द्रित रहते हैं. यह भी उन्हीं में से एक अन्य अध्ययन कहा जा सकता है. हम इन पाश्चात्य अध्ययनों पर इसीलिए ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि यह कुछ मुट्ठी भर व्यक्तियों पर ही केन्द्रित होते हैं. उन्हें सर्वआयामी घोषित करना नादानी ही होगी. लेकिन यह नया अध्ययन तो चूहों पर केन्द्रित है इसे भारतीय परिदृश्य में कितना उपयुक्त समझा जा सकता है यह तो व्यक्तिगत मानसिकता पर ही निर्भर है.
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