क्या सच में संबंधों के महत्व को समझने लगे हैं विदेशी ?
आमतौर पर यह माना जाता है कि पश्चिमी देशों में भावनाओं और आपसी संबंधों का महत्व समय के साथ-साथ कम होता जा रहा है. विदेशों से संबंधित ऐसी कई अवधारणाएं हमारे समाज में विद्यमान हैं, जिनके पीछे की हकीकत जानने की इच्छा शायद अभी तक किसी ने नहीं की है. लेकिन अब अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक लंबे समय से मानव मस्तिष्क में घर कर चुकी ऐसी बेमानी और निरर्थक अवधारणाओं की हकीकत को समझने का प्रयास किया है. अपने नए शोध के अंतर्गत उन्होंने ऐसे भ्रामक तथ्यों को उजागर किया है जो भले ही कितनी भ्रामक क्यों ना हों लेकिन उसे इतनी प्रमुखता के साथ स्वीकार किया जा चुका है कि अब इन्हें नकारने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
- अधिकांश लोगों का यह मानना है कि वैवाहिक संबंध बहुत जल्दी टूट जाते हैं. इनके टूटने की दर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इतना ही नहीं यह भी समझा जाने लगा है कि विवाह के पश्चात बहुत से जोड़े अलग होने की कोशिश में लग जाते हैं. जबकि इनमें से कोई भी तथ्य सही नहीं हैं. क्योंकि विदेशों में तलाक की दर अभी भी उतनी ही है जितनी पहले थी. अमरेकी परिवारों का विश्लेषण करने वाली प्रोफेसर मैक क्रिंडल का कहना है कि तीन में से एक वैवाहिक संबंध ही तलाक के कगार तक पहुंचता है, यह आंकड़ा इतना पुख्ता है क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि दो में से 1 जोड़े को तलाक की अर्जी डालनी पड़े.
- विदेशों के संदर्भ में वैवाहिक संबंध की औसत आयु केवल सात साल समझी जाती है. अर्थात औसतन कोई भी वैवाहिक संबंध सात वर्ष से अधिक नहीं चलता. जबकि इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है. क्योंकि यह देखा गया है कि लगभग 8 साल के पश्चात दंपत्ति अलग रहने का निर्णय लेते हैं और 12 वर्ष बाद आधिकारिक रूप से तलाक ले
- ऐसा समझा जाता है कि विदेशों में आज भी जन्मदर नियंत्रित है और युवा लड़कियां या कम आयु वाली महिलाएं मातृत्व ग्रहण करने में दिलचस्पी नहीं लेतीं. लेकिन यह भी सच नहीं है क्योंकि बढ़ती जनसंख्या और अन्य आंकड़े यह साफ प्रदर्शित कर रहे हैं कि कम आयु वाली महिलाएं भी गर्भधारण करना चाहती हैं.
- ऐसा माना जाता है कि युवा और किशोरवय बच्चे ज्यादा समय तक अपने अभिभावकों के साथ नहीं रहते, जबकि बच्चों में बढ़ता मोटापा यह प्रदर्शित कर रहा है कि बच्चे अपनी मां के साथ घर पर ही रहते हैं जहां उनका भली प्रकार ध्यान रखा जाता है.
मैक क्रिंडल का कहना है कि पहले की अपेक्षा वैवाहिक संबंध ज्यादा स्थिर और खुशहाल हैं. कुछ लोग अपने जीवन के तीस वर्ष भी एक ही साथी के साथ बिता रहे हैं. यही वजह है कि तलाक से जुड़े आंकड़ों में गिरावट देखी जा रही है.
अगर भारतीय दृष्टिकोण से परिमार्जित होते विदेशी हालातों को देखा जाए तो भी हम यही कह सकते हैं कि भले ही पाश्चात्य देश संबंधों को कितनी ही गंभीरता से क्यों ना ग्रहण कर लें लेकिन फिर भी प्रेम और आपसी भावनाओं के मामले में वह कभी भी अपनी तुलना भारत के लोगों से नहीं कर सकते.
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