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सच में प्यार इंसान को अंधा बना देता है !!

प्यार इंसान को अंधा और मूर्ख बना देता है, यह एक ऐसा कथन है जिसका प्रयोग आए दिन किसी ना किसी रूप में होता ही रहता है. आमतौर पर प्रेमी जोड़ों के विषय में तो यह धारणा आम हो चुकी है कि साथी के प्रति वह इतने ज्यादा आकर्षित हो जाते हैं कि उन्हें दुनियां में और कुछ दिखाई देना भी बंद हो जाता है. भले ही यह आकर्षण कुछ देर के लिए ही क्यों ना हो लेकिन उस कुछ समय के लिए वह व्यवहारिकता को नहीं बल्कि अपनी प्रेम भावनाओं को ही महत्व देने लगते हैं.


हालांकि अभी तक उपरोक्त कथन के पीछे कोई तथ्य साबित नहीं हो पाया था लेकिन हाल ही में संपन्न एक अध्ययन के बाद यह समस्या भी सुलझ गई है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से संबद्ध वैज्ञानिक रॉबिन डनबर का कहना है कि जब व्यक्ति प्रेम संबंध में उलझने लगता है तो मानव मस्तिष्क के वह हिस्से काम करना बंद करते हैं जो तर्कसंगत बातों पर विश्वास करते हैं.


लंदन टाइम्स में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार लंदन कॉलेज में दस वर्ष पूर्व हुए एक प्रयोग को आधार बनाकर और विश्लेषण करने के बाद डॉ. डनबर ने मानव स्वभाव से जुड़े अपने इस सिद्धांत का निर्माण कर दिया.


एक दशक पूर्व यह अध्ययन ऐसे 17 स्वयंसेवियों पर केंद्रित किया गया था जो अपने साथी से हद से भी ज्यादा सच्चा प्रेम करते थे. डनबर का कहना है कि जब उन लोगों ने अपने साथी की तस्वीर देखी तो रोज टिंटेड सिंड्रोम के कारण उनके मस्तिष्क का वह हिस्सा प्रभावित हुआ जो तर्क के आधार पर काम करता है. उनके सभी निर्णयों और विचारों में भी दिल और भावनाओं की भूमिका प्रभावी हो गई और मस्तिष्क का प्रयोग वह न्यूनतम करने लगे.


डेली टेलीग्राफ के अनुसार डॉ. डनबर का कहना है कि जब आप किसी से प्रेम करते हैं तो आप स्वभाविक तौर पर उनसे जुड़ा हर मसला भावनात्मक तरीके से ही सुलझाते हैं. आप सही-गलत और तर्कसंगत चीजों को जानबूझकर नजरअंदाज करते हैं. प्रेमी को दुख ना पहुंचाने और अपने संबंध को बरकरार रखने के लिए ही आप अपने दिमाग का उपयोग करना बंद कर देते हैं.


उपरोक्त अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो प्रेम का बुखार तो हमारे युवाओं पर भी बहुत जोर-शोर से चढ़ा हुआ है. बिना इसके महत्व और गंभीरता को समझे वह अपनी भावनाओं को प्रेम का नाम दे देते हैं. वैसे हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि आज के समय में प्रेम सिर्फ एक नाम बन कर रह गया जिसका युवाओं के लिए कुछ खास मोल भी नहीं है. प्राय: यही देखा जाता है कि जब दो व्यक्ति एक-दूसरे के साथ संबंध में होते हैं तो भले ही उनमें से एक अपने संबंध को गंभीरता और समर्पण के साथ निभा रहा हो लेकिन अधिकांश मसलों में दूसरा व्यक्ति उसके विश्वास का गलत फायदा उठाकर उसे धोखा देने की कोशिश करता है. सब कुछ देखने और समझने के बावजूद पीड़ित साथी इस बात पर विश्वास नहीं कर पाता कि उसके साथ विश्वासघात किया जा रहा है. अब इसे हम समझदार व्यक्ति की पहचान तो नहीं कह सकते. किसी के प्रति भावनाओं में इतना ज्यादा डूब जाना कि आपको अपने साथ होने वाली धोखेबाजी का ही पता ना चले निश्चित ही इस प्रयोग और स्थापनाओं को सही ठहरा रहे हैं.


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