क्या धुआं मुक्त दिवाली से धुआं मुक्त पर्यावरण बन सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 1 नवंबर तक दिवाली के दौरान पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के आदेश को देकर अपनी सर्वोच्चता दिखाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 1 नवंबर तक दिवाली के दौरान पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के आदेश को देकर अपनी सर्वोच्चता दिखाई है। न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, “हमें कम से कम एक दिवाली को पटाखा मुक्त उत्सव का असर देखना चाहिए”। हाल के साल के अध्ययन से पता चलता है कि दिवाली की रात में प्रदूषण का स्तर चरम सीमा पर होता है। हालांकि, पिछले साल लोगों ने 20% कम पटाखे का इस्तेमाल किया था, फिर भी यह दिवाली मनाने का एक लोकप्रिय तरीका अभी भी है।
अर्जुन गोपाल द्वारा दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछले साल दिवाली के समय और उसके बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि देखी गई थी। लेकिन मुख्य प्रश्न उठता है कि याचिकाकर्ता पूरे वर्ष कहां था? दिवाली के समय वह क्यों जगा है? प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं, पटाखे उनमें से एक हो सकते हैं। दिल्ली में बहुत सारे उद्योग और ऑटोमोबाइल से भरे रोड हैं, जो प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
अगर हम विभिन्न उद्योगों और ऑटोमोबाइल के प्रदूषण स्तर को मापते हैं, तो हम प्रदूषण की उचित स्थिति प्राप्त कर सकते हैं और जरूर ये पटाखों के द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण से कहीं अधिक होगा। उद्योग पूरे साल धुआं फेंकते हैं, फिर भी उनके खिलाफ याचिका दायर करने वाला कोई भी नहीं है। जो लोग इस पटाखों के प्रतिबंध के समर्थक हैं वो लोग फिर क्यों गाड़ियों में घूम रहे हैं, क्या उससे प्रदूषण नहीं हो रहा?
शायद इस बहस का कोई अर्थ नहीं है। मुद्दा यह है कि यदि हम अपने उद्योगों और वाहनों का उचित उपयोग कर सकें, तो कम से कम हम अपने त्योहारों को अधिक आजादी के साथ मना सकते है। इस दिल दुखने वाले फैसले के बाद सोशल साइट्स बहुत से सांप्रदायिक टिप्पणियों से भरे हुए थे। यह फैसला किसी विशेष समुदाय की भावनाओं को चोट पहुंचा सकता है, फिर भी हम इसे किसी अन्य समुदाय के त्योहारों से तुलना नहीं कर सकते।
जैसे सबके त्यौहार अलग हैं, वैसे ही उनको मनाने का तरीका भी अलग है। बहुत से शरारती तत्व हमेशा माहौल बिगाड़ने में लगे रहते हैं, जिससे कि उन्हें प्रसिद्धि मिले। ऐसे तत्व सीधे-साधे लोगो की भावनाओं से खेलने से भी नहीं हिचकिचाते। अक्सर देखा गया है कि सोशल साइट्स का इस्तेमाल करते वक़्त लोग अपने दिमाग का कम दिल का प्रयोग ज्यादा करते हैं और बहुत से लोग इसका गलत फायदा ले लेते हैं।
हमें कोशिश करनी चाहिए की हम इस सबसे बचकर रहें और इस फैसले को कम्यूनल रंग न दें। देखिये यह फैसला कहीं न कहीं हमारे फायदे की बात ही कह रहा है। हमें सोचना चाहिए कि यह प्रदूषण की परेशानी हमारे लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है। धर्म से हटकर इसे सोचना चाहिए, क्योंकि कहीं धर्म के चक्कर में लगकर हम कहीं मुख्य मुद्दा न भूल जाए।
हमारी कोशिश होनी चाहिए कि अब इस साल हम अपनी गाड़ियों का इस्तेमाल इस ढंग से करें कि वो पर्यावरण के लिए घातक न हो और हमारी सरकार को भी जरूरी कदम उठाने चाहिए इन इंडस्ट्रीज से निकलने वाले धुएं के लिए। जब यह परेशानी हम लोगों ने खड़ी करी है, तो इसका नुकसान भी हम लोगों को ही भुगतना पड़ेगा। आशा करता हूँ हम लोग अपनी गलतियों से सबक लेंगे और पूरे साल पर्यावरण के भले के लिए कार्य करेंगे, जिससे की अगले साल पूरे धूमधाम से पटाखों के साथ दिवाली मना सकें।
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