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आदम ज़ात की एक खूंखार प्रजाति का उद्भव हो चुका है शायद,,!!!,जो दिखने में मात्र आदमियों जैसे हैं,,,,,अंदर का हाड़-मांस #हैवानियत से बना है,,सोच #दरिन्दगी का कचड़ा खाना,,,रक्त कोशिकाओं में,,#पिशाची द्रव्य,,आंखों में #हवस और #वहशीपन की भयावह दृष्टि है।
अपने बर्बरतापूर्ण निशृंस कृत्यों से ये पूरे समाज को आतंकित करने में कामयाब होते जा रहे हैं। नही पता किसी भी प्रकार की सरकार,सत्ता,न्यायव्यवस्था इसके क्रूरता से दहाड़कर चलती चाल को अवरोधित कर पाएगी या नही,,,???
“सब नियति निर्धारित होता है” यदि मै या आप ऐसी कोई निर्धारित सोच के तहत अपने जीवन को जीते हैं,,,,, तो #8_साल_की_उस_मासूम_बच्ची की #नियति_निर्धारणा के बारे में सोचकर,,,रूह के परखच्चे उड़ जाते हैं!!!!!
हे ईश्वर !!!मंदिर में क्या मात्र तुम्हारी पत्थर की मूरत ही धरी होती है,,,????????
आए दिन होने वाले ना जाने कितने ऐसे नख से शिख तक अंदर से बाहर तक दहला देने वाले अमानवीय जघन्य कृत्य दावानल की चटपटाती लपटों सें फैलते ही जा रहे,,,,समाधान की गुहार किससे लगाई जाए??? आत्म चिन्तन किस बात पर किया जाए और कितना किया जाए,,?? ईश्वर की तरफ मुख करके कातर दृष्टि से देखा जाए,,?? या अपने घरों के मासूमों के उन्मुक्त उड़ान भरने के लिए उगे पंखों को कतर कर घर की चार दिवारी में कैद कर दिया जाए,,,??? पर क्या वे घर में भी सुरक्षित हैं,,,???? यह खूंखार प्रजाति कहाँ कब किस भेष में छुपी हो,,,कौन जाने,,??? फिर इनकी शक्लें भी तो आदमियों जैसे ही दिखती हैं,,!!!
यह कैसा आंतकवाद ईश!!! जिसका अंकुर समाज के भीतर अपनी जड़ जमाता जा रहा,,,और धीरे-धीरे इसकी कुलुष कालपाशी जड़ें,,सभ्यता की हर इमारत की नींव को हिलाती जा रहीं,,,। धरातल उखड़ रहे,,,दीवारें चटख रहीं,,,!!
दोष किसको दें??? रोएं,,,मातम मनाएं,,,कलम घिसें,,,,आपस में चर्चा करें,,,,,आखिर करें तो क्या करें,,,???
बस प्रश्न ही प्रश्न,,,,भगवान तुम भी मंदिरों में अपने ‘इमोजी’ चिपका कर किसी अन्य लोक चले गए शायद,,,है ना,,?? जब आभासी दुनिया का प्रपंच जाल इतना प्रभावशाली हो चला है तो भगवान कैसे पीछे रहते,,,???
लिख लिया मैने अपना भीतरी आतंक,,,,अब क्या करूँ,,? प्रतीक्षा फिर कोई नया मामला आए,,???? दुख,भय,आतंक की परिभाषा और उदाहरण इतने निशृंस हो जाएगे,,,,अनुमान नही था,,,,!
बस इतना ही,,,अधिक कहने को कुछ बचा नही अब,,,
लिली मित्रा
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