- 125 Posts
- 73 Comments
नारी-मन को समर्पित….
***************
ये मेरा ही जलाया अग्नि-कुंड है,,
भस्म होने दो मुझे
आहिस्ता-आहिस्ता,,,
क्या कहूँ,,,,?
किससे कहूँ,,,???
क्या कोई समझ पाएगा,,,????
अहेतुक मेरी ज्वाला
की धधकती आग में
अपनी कुंठित सोच की रोटियां पकाएगा,,,
इसलिए ,,,
छोड़ दो मुझे,,,
और,,,, जलने दो,,!!!
और घृत डालो
आक्षेपों का,,,
लपट दूर तक उठनी चाहिए,,
वह चटपटाती सी एक
चिलकती ध्वनि,,
मेरी लपटों से आनी चाहिए,,,,
हाँ,,,यह मेरा खुद का जलाया
अग्नि-कुंड है,,,,
धूँ,,,धूँ कर जलना चाहिए,,,,
देखो इसके आस-पास
यज्ञ वेदी की दीवार मत बनाना,,,
वेदों की ऋचाओं के पाठ कर
पवित्रता का पुष्प मत चढ़ना,,,,
दावानल सा दहकने दो,,,
हाँ यह मेरा जलया
अग्नि-कुंड है,,,,,
मुझे सब भस्म हो जाने तक,,
भड़कने दो,,,,,
इतना अवश्य करना,,,,
मेरी गर्म भस्मावशेष पर
कुछ छींटे अपने प्रीत जल के,
छिंड़क देना,,,
मेरे भस्म को अधिक देरकी
सुलगन मत देना,,,
एक चिटपिटाती छन्नाती आहहह्
के बाद मैं चिरशान्ति में लीन हो
जाऊँगीं,,,
खुद को जलाकर ही,,,
अब मेरा आत्म मुस्कुराएगा,,
शायद यही मेरा सर्वश्रेष्ठ
प्रायश्चित कहलाएगा,,
अब छोड़ दो मुझे
जलने दो,,,!!!
Read Comments