meriabhivyaktiya
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तुम तो निर्णय कर चुकी कि मैं तुमसे मिल न पाउँगा,
ज़िद मेरी भी सुनलो प्रियतमा मिले बिना न जी पाउँगा।
प्रेम सुवासित पुष्प प्रिये मै ह्दय लिए बस कालचक्र में बाधित हूँ ,
अवसर पा गजरे मे गुथ प्रिये तुम्हारे जुड़े मे गुथ जाउँगा।
जनमो से मै प्रीत का रीता खाली गागर लिए खड़ा,
तुम अमृत सरिता सी बहती मै डूब प्रेम-कलश भर जाउँगा।
अतृप्त,अधूरा, बिखरा-बिखरा आत्म मिलन को विह्वल हूँ,
दिव्य मिलन कर तुमसे प्रियतमा तुममे ही मिल जाउँगा।
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