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अरावली के बीहड़ ,,और टेसु के जंगल,,,

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
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मन अरावली का
बीहड़,,
‘तुम’
छिटके टेसु के
‘जंगल’
मेरी शुष्कता के
भूरेपन को,
अपनी चटखीली
रंगत से,
रंगीन बनाते हुए,,,
कटीले मनोभाव,
सूखती टहनियों पे,
चुभते हुए,,,
तप्त अंतस चातक सा
अधीर,,
धूल के, सतही
चक्रवात,,
सड़कों पर घूमते से,,
तुम्हारी हरीतिमा को भी,
पतझड़ में उड़ाते,

मन के अरावली बीहड़,,,,
और
तुम,,,,,,,
छिटके टेसु के जंगल,,
मेरी शुष्कता के
भूरेपन को,,
अपनी चटखीली रंगत से
रंगीन बनाते,,
खिले रहना यूँ ही
सदा मेरे उरभूमि पर,,
तुम पर निकाल कर
अपने कटीले,चुभीले
उद्गार,,
शायद मैं फिर हरी हो जाऊँ😊

लिली🌿

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