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एक ताज़ा संस्मरण

meriabhivyaktiya
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कल शाम की ही बात है,,, मुझे डाॅक्टर के पास अपनी नियमित जांच के लिए जाना था,।मैं और मेरे पतिदेव कार से घर की तरफ लौट रहे थे।शाम के करीब 7 या7:30 का समय रहा होगा। उस सड़क पर बहुत से ऑफिस,कोचिंग सेन्टर दुकान वगैरह थीं,,कुल मिलाकर चहल-पहल वाला इलाका था।
मैने देखा एक किशोरी उम्र 16-17 के आस पास रही होगी। पीठ पर एक पिट्ठू बैग लिए अपनी ही धुन में मस्त थी,,शायद कोचिंग क्लास कर के निकली थी। उसे ना अगल-बगल चलने वालों की फिक्र थी,,, ना उसकी स्वाभाविक सी अलमस्तता को घूरने वालों का ध्यान,,,,!
उसकी अल्हड़ता ने मेरा भी ध्यानाकर्षण कर लिया। मुझे अच्छी लगी उसकी यह मस्ताई सी उम्रानुकूल अदा।
सामने से उसी उम्र के कुछ नवयुवक आते दिखे,,उन लड़कों की एक अजीब सी ललचाई नज़रों की लेज़र दृष्टि कुछ ही क्षणों में उस कन्या को नख से शिख तक भेद कर गुज़र गई। पर वह लड़की इन सब से बेखबर सड़क पार कर निकल गई।
मेरे दिल और दिमाग में छेड़ गई विचारों का घमासान,,,,!
कभी विचार आता था,,,”उस किशोरी को सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी अल्हड़ता नही दिखानी चाहिए,,।”

तो कभी ख्याल आया-” यदि देखा जाए, लिंग भेद से परे लड़कियां भी तो एक मनुष्य हैं,,,,!!! यदि पुरूष वर्ग के लिए,, सड़कों या अन्यत्र कहीं भी किसी प्रकार की लोक-लाज,मर्यादा, की सीमा रेखा से परे रह,, अल्हड़पन करने को स्वतंत्र है,,, तो फिर महिला वर्ग क्यों नही,,??????
मैं बस इसी वैचारिक द्वंद में उलझती रही,,,कार में रेडियो बज रहा था,,, कोई अच्छा गाना बीच-बीच में ध्यान खींच ले रहा था,, पर वह घटना भी मस्तिष्क के किसी भाग में,,अपनी अल्हड़ता लिए झूम रही थी।
वैसे यह कोई नई बात नही थी,,,रोज़मर्रा के जीवन में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं,,,और मेरी आंखों के कैमरे में ऐसी कई तस्वीरे कैद हैं। बस,,,,,,, नही है, तो केवल इन तस्वीरों में कैद मेरे प्रश्नों के सटीक सटीक निष्कर्ष,,,,,,,,,,,,,

लिली

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