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एक स्कूटर सी है जिन्दगी मेरी।सारा दिन सड़कों पर दौड़ती ,,,शाम को गैराज मे सुस्ताती ,,और अगली सुबह 3-4 ‘किक’ के साथ स्टार्ट लेती हुई फर्राटे से सड़के नापती हुई चल पड़ती है।
बड़ी नीरस सी प्रतीत हो रही है ना आपको लेख की शुरूवात?????सोचते होंगें,क्या सब लिखने लगी मै,,,स्कूटर,,सड़क,गैराज,, हा,हा,हा,हा,,,,,। मेरी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी है,,,,कुछ बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अग्रसर सोच है, एक तपस्या है, भाग- दौड़,,,और एक लंबा समयान्तराल है,,। इन सभी दैनिक आपाधापी से गुज़रते हुए, प्रतिदिन कुछ नूतन अनुभव होते हैं। वही एक जैसे रास्ते,वही चित-परिचित गन्तव्य,वही समयसारिणी,,,परन्तु नित नए अनुभव ।
सड़कों के ‘ट्रैफिक-जाम’ से कुशलतापूर्वक निकलती हुई मेरी स्कूटर कभी स्वयं के ‘चालन-कौशल’ पर इठलाती है,,तो कभी समय,गति और सही निर्णय ना ले पाने के अभाव मे हुई त्रुटि पर मुँह छिपाती है। उन्ही जाने-पहचाने उबड़-खाबड़ रास्तों पर कभी सहजता से आहिस्ता से निकल जाती है, तो कभी उन्ही पर ज़ोर से उछलती हुई अनियन्त्रित हो जाती है।
सड़के कभी खाली मिल जाए हुजूर तो फिर क्या कहने!!!!!! ,,,मक्खन सी फिसलती है,,,,पहियों और ब्रेक का तालमेल एकदम दुरूस्त,,,रफ्तार के साथ गुनगुनाती है,,,”जिन्दगी एक सफर है सुहाना,,यहाँ कल क्या हो ,किसने जाना”,,,, मै और मेरी स्कूटर दुनिया से बेगानी ,एकदम मस्तानी चाल मे दनदनाती हुई,,,,बस पंख ही नही लगते,,,वरना नौबत उड़ने तक की आ जाती है,,,।
एक बड़ी रोचक और मज़ेदार घटना अक्सर होती है-जब सामने या बगल से गुज़रने वाला वाहनचालक ‘गलत टर्न’ या ‘ओवरटेक’ लेने की कोशिश करता है, उस स्थिति मे उसकी अभद्रता और ‘ट्रैफिक-नियमो’ की उलाहना पर तेज़-तर्रार दृष्टि से कुठाराघात करते हुए बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती है,,,यदि किसी दिन मै ऐसी किसी उलाहनापूर्ण स्थिति का परिचय देती हूँ, तो परिस्थिति से ऐसे ‘कन्नी काटती’ हुए निकल जाती हूँ, मानो कुछ हुआ ही नही,,चेहरे पर यह भाव दिखाना-” ठीक है यार हो जाता है,,!”
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