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छात्रवृत्ति से वंचित बच्चे!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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(शरद खरे)

समाकेतिक छात्रवृत्ति योजना के लिए प्रदेश शासन द्वारा सख्ती से काम करने की आवश्यक्ता पर बल दिया गया था ताकि जरूरत मंद विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति समय पर मिल सके और वे अपनी पढ़ाई निर्विघ्न संपन्न कर सकें। जिला प्रशासन द्वारा भी इसके लिए अवश्यक दिशा निर्देश जारी किए गए थे। मीडिया में बार-बार यह मामला सुर्खियों में आया कि समाकेतिक छात्रवृत्ति योजना के तहत मेपिंग और फीडिंग के कार्य में लापरवाही बरती जा रही है, फिर भी प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्यवाही न होना आश्चर्य का विषय है।

सरकारी योजनाओं और खबरों को मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाने के लिए पाबंद जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा भी बार-बार इस आशय की खबरों का प्रसारण किया गया था जिसमें समाकेतिक छात्रवृत्ति योजना के तहत मेपिंग और फीडिंग के साथ ही साथ देयकों को कोषालय में 25 मार्च तक आवश्यक रूप से जमा करवाने की बात कही गई थी। आज 27 मार्च तक प्रशासन की ओर से इस तरह की कोई भी बात नहीं कही गई है, जिसमें यह पता चले कि जिले में स्कूल शिक्षा विभाग और आदिवासी विकास विभाग के तहत संचालित शालाओं के कितने बच्चों को छात्रवृत्ति के योग्य पाया गया? और कितने बच्चों की छात्रवृत्ति के देयक ही कोषालय में जमा करवाए गए?

वहीं, दूसरी ओर आदिवासी विकास विभाग में तो नया कारनामा सामने आया है। यहां दो-दो डीडीओ होने की बात सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग द्वारा स्वीकार की गई है। नियमित शिक्षकों का वेतन विकास खण्ड अधिकारी के द्वारा निकाला जा रहा है, तो शेष शिक्षकों का वेतन उस संकुल के प्राचार्य द्वारा निकाला जा रहा है। जिन प्रधान पाठकों या शिक्षकों द्वारा बीडीओ के माध्यम से इंद्राज किया गया है उनकी जानकारी बीडीओ के पास सुरक्षित हो चुकी है, पर इनके देयक नहीं बन पाने से ये विद्यार्थी छात्रवृत्ति से वंचित हो गए हैं।

कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि आधे से ज्यादा विद्यार्थियों की जानकारी का इंद्राज ही नहीं किया जा सका है। साथ ही साथ अनेक जगहों पर निजि स्तर पर भी जानकारियां और पासवर्ड देकर इंद्राज करवाए गए हैं। संचार क्रांति का युग है, अब कुछ भी छिपाना संभव नहीं है। संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव अगर खुद इस मामले की जांच करवा लें तो दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है।

जिला कलेक्टर से जनापेक्षा है कि देश के भविष्य समझे जाने वाले बच्चों के साथ इस तरह की संगीन लापरवाही में अब कड़े निर्देशके बजाए आवश्यकता है कड़े कदमोंकी। जिला कलेक्टर से अपेक्षा है कि हर प्रधान पाठक से इस बात का प्रमाण पत्र मात्र ले लिया जाए कि उनके द्वारा इस योजना के तहत इंद्राज कहां से करवाया गया है, उस कंप्यूटर का आईपी एॅड्रेेस और इंटरनेट के उपयोग का नंबर (सिम या लेण्डलाईन) ही मांग लिया जाए, तो कुहासा छटने की उम्मीद की जा सकती है।

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