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अब मोबाईल दरें बढ़ाने की कवायद!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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कहा जाता है कि गोरे ब्रितानी शासकों ने गुलाम भारत के लोगों को पहले चाय पीने की आदत डाली। आजादी के पहले देश के निवासियोंं को निशुल्क चाय दी जाती थी। जब लोगों को इसकी लत लग गई तब गोरे शासकों ने चाय कि मनमाने दाम वसूलना आरंभ कर दिया गया। इससे चाय के मामले में देशवासी न केवल लुटे वरन अंग्रेजों पर निर्भर हो गए। कमोबेश यही स्थिति वर्तमान में मोबाईल सेक्टर की है। पहले कम दरों पर मोबाईल से बातें करने और इंटरनेट का उपयोग करने की आजादी दी गई, अब जबकि मोबाईल दिनचर्या का एक अंग बन गया है तब दरें बढ़ाने का ताना बाना बुना जा रहा है।

 

 

पिछले दिनों टेलीकाम सेवाओं में एक अजीब सी हलचल दिखाई दे रही थी। अखबारों में भी मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों के द्वारा मोबाईल सेवाओं की दरें बढ़ाने की बात कही जा रही थी। आम उपभोक्ता की नजरों से इस तरह की खबरें छिपी रहीं। फिलहाल निजी क्षेत्र के लगभग सभी सेवा प्रदाताओं ने यह घोषणा कर दी है कि वे दिसंबर से मोबाईल सेवाएं महंगी कर देंगे। सरकार की नवरत्न कंपनी में शुमार भारत संचार निगम लिमिटेड अभी इस दौड़ में नहीं दिख रही है। बीएसएनएल के द्वारा दरें कब बढ़ाई जाएंगी यह बात भविष्य के गर्भ में ही है।

 

 

देखा जाए तो बीएसएनएल में नीति निर्धारकों की कमी साफ दिखाई देती है। सरकारी उपक्रमों में शैक्षणिक योग्यताओं को ही मनुष्य की वास्तविक योग्यताएं माना जाता है, जबकि जो व्यक्ति बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल होता है वह भले ही कम पढ़ा लिखा हो पर पढ़े लिखे को पानी पिलवा सकता है। नागपुर शहर की एक किंवदंती है, जो लोग अक्सर सुनाया करते है। कन्हान से नागपुर के बीच सड़क के ऊपर एक पुल बना हुआ है। एक बार एक ट्रक जिसमें काफी ऊंंचाई तक माल भरा था, वह इसके नीचे जाकर फंंस गया। ट्रक टस से मस नहीं हो रहा था।

 

 

इसके बाद जबलपुर से नागपुर जाने वाले मार्ग पर दोनों ओर वाहनों की लंबी लंबी कतारें लग गईं। उस दौर के जाने माने ब्रितानी अभियंताओं ने इस पुल का निरीक्षण किया और अंत में यही निष्कर्ष निकाला कि रेल की पातों को काटकर ट्रक को निकाला जाकर फिर से पातें बिछाई जाएं। पर इस पूरे काम से रेल मार्ग कम से कम तीन माह बाधित रहता।

 

 

यह पूरी प्रक्रिया वहां से रोज गुजरने वाला एक चरवाहा देखता और अंग्रेजों पर हंसता। अंग्रेजों के एक कारिंदे ने लाट साब को यह बात बताई। फिर क्या था चरवाहे को तलब किया गया। लाट साब ने उससे पूछा कि वह रोज निकलते समय हंसता क्यों है! इस पर उसने कहा कि आप लोग पढ़े लिखे हैं पर निरे बेवकूफ हैं। यह पूरी समस्या बिना कुछ तोड़े फोड़े ही हल हो सकती है।

 

 

अब चौंकने की बारी लाट साब की थी। उन्होंने कहा कि अगर चरवाहे की बताई तकनीक से ट्रक नहीं निकला तो उसे दीवार में चुनवा दिया जाएगा। अगले दिन सुबह चरवाहे के साथ गोरे ब्रितानी अफसरान मौके पर पहुंचे। चरवाहे ने एक लकड़ी ली औरा ट्रक के सभी पहियों की हवा निकाल दी। इससे ट्रक की ऊपरी सतह छः इंच नीचे आ गई और किसी तरह ट्रक को निकाल लिया गया। कुल मिलाकर डिग्री से ज्यादा महत्व व्यवहारिक ज्ञान का होता है। इसलिए हर संस्था में योजना (प्लानिंग सेक्शन) प्रभाग में व्यवहारिक लोगों को अगर रखा जाए तो बेहतर प्रतिसाद सामने आ सकते हैं।

 

 

बहरहाल, अभी जबकि निजि सेवा प्रदाता कंपनियों के द्वारा दरें बढ़ाने की बात की जा रही है तब बीएसएनएल मौन है। इसके पहले भी जब दरें कम की गईं थी तब भी बीएसएनएल ने काफी विलंब के बाद इस मामले में निर्णय लिया था। अगले माह से निजि सेवा प्रदाता तो दरें कम कर देंगे पर बीएसएनएल जब तक इस मामले की सुध लेगा तब तक उसका घाटा कितना बढ़ जाएगा कहा नहीं जा सकता है। निजी सेवा प्रदाता आईडिया और वोडाफोन की हालत किसी से छिपी नहीं है। दोनों ही कंपनियां सरकारी इमदादा की राह तक रहीं हैं। सरकारी इमदाद की भी एक सीमा है। हालात देखकर यह नहीं लगता कि सरकारी मदद इतनी हो कि इन दोनों कंपनियों को घाटे से उबारा जा सके।

 

 

 

जब भारत में मोबाईल सेवाओं का पदापर्ण हुआ था उस समय यहां की दरें विश्व में सबसे अधिक हुआ करती थीं। कॉल करने यहां तक कि फोन सुनने के भी पैसे लगा करते थे। इसके बाद अचानक ही देश की मोबाईल सेवाएं इतनी सस्ती हो गईं कि विश्व भर में इस बात पर शोध किया जाने लगा कि आखिर कंपनियां इतनी कम दरों पर सेवाएं देकर जीवित कैसे रह पाएंगी। एक अनुमान के अनुसार देश में इस समय सवा अरब से ज्यादा मोबाईल फोन धारक हैं। इस लिहाज से अब देश में मोबाईल कनेक्शन्स के मामले में सेचुरेशन आ चुका है। अब नए कनेक्शन की गति बहुत ही मंथर हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

 

 

 

मोबाईल सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम घोटाले में भी जांच जारी है। इसके अलावा अब मोबाईल सेवाओं में बढ़ोत्तरी के साथ ही साथ मोबाईल सेवाओं की गुणवत्ता के बारे में भी हुक्मरानों को विचार करने की जरूरत है। कॉल ड्राॅप , रॉन्‍ग नबर, कनेक्टविटी न मिलना सिग्नल्स की समस्या न जाने कितने कारक हैं, जिसके चलते आम उपभोक्ता बार बार अपना सेवा प्रदाता बदलता दिखता है।

 

 

नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं। इनसे संस्‍थान का कोई लेना-देना नहीं है।

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