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भयावह तरीके से गिर रही पक्षियों की तादाद

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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भारत में अनेक प्रजातियों के पक्षी हैं। इन पक्षियों की तादाद में एकाएक कमी दर्ज किया जाना चिंता का विषय माना जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में वर्ष 2020 की जो रिपोर्ट जारी की गई है उसमें भारत को लेकर दिए गए आंकड़े बहुत ही भयावह माने जा सकते हैं। मनुष्य द्वारा पर्यावरण को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है वह पक्षियों के लिए काल से कम साबित नहीं होता दिख रहा है। पक्षियों पर मण्डराता संकट वास्तव में चिंता की बात है। यह केवल मानव ही नहीं वरन समूचे पर्यावरण के लिए शुभ संकेत तो कतई नहीं माना जा सकता है। इसके लिए केंद्र और सूबाई सरकारों को ध्यान देकर पक्षियों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने की महती जरूरत महसूस हो रही है।

 

 

 

अभी ज्यादा समय नहीं बीता जब देश में गौरैया के गायब होने पर सरकारों सहित पर्यावरणविदों के द्वारा इस मामले में चीख पुकार आरंभ की गई थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित द्वारा भी दिल्ली में गोरैया के अस्तित्व पर संकट छाने पर 2008 में चिंता जाहिर की गई थी। इसके बाद मानो सब कुछ सामान्य ही हो गया। विश्व गौरैया दिवस मनाए जाते समय 20 मार्च को अवश्य इस बारे में चिंता जाहिर की जाती रही है।

 

 

 

प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र के द्वारा किए गए समझौते के तहत भारतीय पक्षियों की स्थिति पर एक रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है। इस रिपोर्ट में 867 तरह के भारतीय पक्षियों के संबंध में अध्ययन और विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इस रिपोर्ट में पच्चीस साल से ज्यादा समय के आंकड़ों पर अध्ययन किया गया है। इसमें यह पाया गया कि पक्षियों की 261 तरह की प्रजातियों में 52फीसदी से अधिक की कमी दर्ज की गई है। इसके अलावा आंकड़ों को अल्पकालिक संदर्भ में देखा गया तो 146 प्रजातियों में अस्सी फीसदी गिरावट दर्ज की गई है।

 

 

 

रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण से छेड़छाड़ के चलते रेप्टर और प्रवासी समुद्री पक्षियों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। पश्चिमी घाटों पर 75 फीसदी कमी दर्ज किया जाना भी चिंता का विषय है। इस रिपोर्ट का सकारात्मक पहलू यह भी सामने आया है कि देश के राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या में जमकर इजाफा भी दर्ज किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार गोरैया की तादाद शहरों में जरूर घटी है पर इसकी संख्या में कमी नहीं आई है। यह चिंता सिर्फ भारत के लिए नहीं मानी जा सकती है, विश्व भर की लगभग दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।

 

 

 

दरअसल, प्रवासी पक्षियों के सामने अनेक दुश्वारियां मुंह बाए खड़ी होती हैं। इसमें तापमान का तेजी से बढ़ना सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के अनुरूप देशों की सरकारों के द्वारा औद्योगिम नीतियों और उद्योगों के संचालन के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही साथ पक्षियों के शिकारियों से इन्हें बचाना बहुत बड़ी चुनौति है। पक्षियों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए भी ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।

 

 

 

लगभग पांच माह पहले विज्ञान पर आधारित पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट को अगर सच माना जाए तो उत्तर अमेरिका में ही तीन अरब से ज्यादा पक्षी गायब हो गए। पक्षियों से वातावरण बेहतर बनता है, इनके कलरव से मन प्रफुल्लित होता है पर पक्षियों पर छाए इस खतरे से मानव पूरी तरह अनजान ही माना जा सकता है।

 

 

 

 

जब भी इस तरह के आंकड़े सामने आते हैं, वैसे ही पक्षियों से प्रेम का दिखावा करने वाले गैर सरकारी संगठनों और सरकारों के द्वारा राग अलापना आरंभ कर दिया जाता है। कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य ही होने लगता है, जो चिंता की बात है। दरअसल, जैसे जैसे जंगलों का रकबा कम हो रहा है और शहरों में खाली स्थानों पर कांक्रीट जंगल खड़े हो रहे हैं, वैसे वैसे पेड़ भी कटते जा रहे हैं। जाहिर है पेड़ नहीं रहेंगे तो पक्षी अपना घौंसला कहां बनाएंगे!

 

 

 

बढ़ती आबादी के साथ ही बाग बगीचों का दायरा भी सिकुड़ता जा रहा है। लोगों के घरों में लगे पेड़ भी नेस्तनाबूत कर दिए गए हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से पक्षियों के बसेरे या उनके घौंसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके अलावा मोबाईल टावर्स से निकलने वाली तरंगें भी इनके लिए खतरे से कम नहीं हैं। इस बारे में अनेक अध्ययनों में चेतावनी कई बार जारी की जा चुकी है पर ये चेतावनियां भी तंबाखू उत्पादों पर लिखी चेतावनी की तरह ही प्रतीत होती हैं।

 

 

 

एक बात और गौर करने वाली है कि जब प्रदूषण जैसे जहर ने मनुष्य को प्रभावित किया है तब अपेक्षाकृत संवेदनशील पक्षियों पर इसका क्या असर हो रहा होगा इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। हम इस बात को बेहतर जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं। इन रिपोर्टस से यही जाहिर होता है कि अगर पक्षियों की तादाद इस तेजी से कम होती जा रही है तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में यह सब मनुष्य के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं होगा। अभी भी समय है अगर प्रदूषण और अन्य मामलों को लेकर हम नहीं चेते तो आने वाला समय हमारे लिए बहुत ही दुखदायी साबित हो सकता है।

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्‍वयं उत्‍तरदायी हैं।

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