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महिलाओं को सेना में स्‍थाई कमीशन देने का फैसला

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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एक सवाल मन में कौंधना स्वाभाविक ही है कि अगर देश में अदालतें न हों तो क्या होगा। पिछले दिनों भारतीय सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का फैसला दिया गया है,जिसका स्वागत किया जा रहा है। इस फैसले के बाद थलसेना में परिदृश्य बदला बदला दिख सकता है। इसके पहले वायुसेना और नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के विकल्प काफी पहले से खुले रखे गए थे।

 

 

 

इक्कसवीं सदी का दूसरा दशक समाप्त होने को आ रहा है। विजन 2020 में भी अगर हम बाबा आदम के जमाने की सोच रखें तो निश्चित तौर पर यह उचित नहीं माना जा सकता है। आज के दौर में महिलाओं ने अपनी वजनदारी उपस्थिति दर्ज कराई है। महिलाएं चौका चूल्हा संभालने के साथ ही पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती नजर आती हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र में भी महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले कामों को सराहना मिलती आई है।

 

 

 

 

बात अगर सेना की हो तो सेना में महिलाओं को दिए जाने वाले दायित्वों का निर्वहन उनके द्वारा पूरी ईमानदारी से किया जाता रह है। इसके बाद भी थल सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन से वंचित रखने से उनका मनोबल भी कम होता दिख रहा था। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद उम्मीद है कि सब कुछ पटरी पर लौट सकेगा। शीर्ष अदालत द्वारा दो टूक शब्दों में कहा है कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया जाना चाहिए। युद्ध की स्थितियों में मोर्चे पर भेजने की बात को अदालत के द्वारा सरकार और सेना के विवेक पर ही छोड़ दिया गया है।

 

 

 

 

इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा यह दलील दी गई थी कि सेना में अधिकांश जवान ग्रामीण परिवेश से आते हैं और महिला अधिकारियों से आदेश लेना उनके लिए असहज हो जाएगा। इसके अलावा सरकार का कहना यह भी था कि महिलाओं की शारीरिक बनावट और पारिवारिक, सामाजिक दायित्व उनके कमांडिंग आफीसर बनने में बाधक साबित हो सकते हैं। कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। सरकार शायद यह भूल गई कि देश के अनेक जिलों में पुलिस अधीक्षक जैसे कमांडिंग आफीसर के पद पर महिलाएं हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे पदों पर भी महिलाओं ने पदस्थ रहकर अपने आप को साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं हैं।

 

 

 

 

एक तरफ तो केंद्र सरकारों द्वारा महिलाओं को आगे लाने के लिए उनके हित में विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है, पर जब बात सेना की आती है तो सरकार यू टर्न लेकर बाबा आदम जमाने वाली सोच के साथ खड़ी दिखाई देती है। अभी जिस तरह की व्यवस्था लागू थी उसके चलते सेना में महिलाएं बहुत ही दुविधा में होती थीं। उन्हें यह पता नहीं होता था कि 14 साल की सेवा देने के बाद उन्हें अपनी बराबरी वाले पुरूष अधिकारियों की तरह मौके मिलेंगे अथवा नहीं! इसी के चलते महिलाएं शार्ट सर्विस कमीशन की मियाद पूरी होने के पहले ही अपने लिए रोजगार का दूसरा रास्ता भी खोजने लग जाती थीं।

 

 

 

अभी तक सेना में महिलाओं द्वारा अशांत क्षेत्रों में सेवाएं दी जाती हैं। पैरामिलेट्री फोर्सेस में भी महिलाओं की शानदार भूमिकाओं के लिए उन्हें अनेकों बार सराहना भी मिली है। अभी तक थल सेना में आर्म्‍ड, आर्टिलरी और इन्फेंटरी को छोड़कर हर जगह पर महिलाओं को बराबरी से भागीदार बनाया जाता है। तपता रेगिस्तान हो, अपेक्षाकृत ठण्डे प्रदेश या बारिश के दौरान जंगलों की खाक छानने जैसे अभ्यास, हर जगह महिलाओं को पुरूषों के साथ ही रखकर अभ्यास कराए जाते हैं। यह बताने का तात्‍पर्य महज इतना ही है कि महिलाओं में जब वे सारे गुण मौजूद हैं जो पुरूषों में हैं तब उन्हें किस आधार पर सेना में स्थाई कमीशन के अधिकार से वंचित रखा जाता रहा है!

 

 

 

लंबे समय से महिलाओं द्वारा पुरूषों के बराबर खड़े होने के लिए संघर्ष किया जा रहा है। महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों में तो आरक्षण है पर विधान सभा या लोकसभा सीट के लिए आरक्षण नहीं है। यहां भेदभाव साफ तौर पर दिखाई देता है। आजादी के पहले महिलाओं की क्या स्थिति थी इस बारे में इतिहास खंगालने पर अनेक बातें सामने आ सकती हैं। महिलाओं को बच्चे पैदा करने, घर संभालने और खाना बनाने के लिए ही समझा जाता था। अब समय बदल चुका है। धीरे धीरे परंपराएं और व्यवस्थाएं भी बदलीं। अब महिलाएं घरों की दहलीज लांघकर परिवार में मुखिया की भूमिका में भी दिखती हैं।

 

 

 

 

शीर्ष अदालत के फैसले से निश्चित तौर पर भेदभाव वाली परंपरा को रोका जा सकता है। देखा जाए तो इस काम के लिए महिलाओं के अदालत का दरवाजा खटखटाने के पहले ही सरकार को इस मामले में कमोबेश इसी तरह का निर्णय देना चाहिए था। यह काम सरकार का है पर कथित अनदेखी से यह काम अदालत को करना पड़ रहा है। भारतीय सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी और उनके काम को देखते हुए उनकी क्षमताओं पर अगर केंद्र सरकार द्वारा शक किया जा रहा है तो यह निश्चित तौर पर महिलाओं और सेना का अपमान माना जा सकता है। 

 

 

 

कुल मिलाकर शीर्ष अदालत द्वारा हाल ही में दिए गए फैसले से महिलाओं के सेना में स्थाई कमीशन का अधिकार मिल गया है। यह महिलाओं के भविष्य का एक स्वर्णिम दरवाजा था जो अब खुलता दिख रहा है। शीर्ष अदालत ने सौ टका सही बात कही है कि हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। सरकारों को सोचना होगा कि देश में लोगों के हक के लिए कब तक न्यायालय के दरवाजे खटखटाने होंगे। यह काम सरकारों का है पर सरकारें इस तरह के काम में अनदेखी ही करती आई हैं। सरकार को अपना रवैया बदलना ही होगा। 

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्‍वयं उत्‍तरदायी हैं।

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