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जानिए किराए की कोख अर्थात सरोगेसी आखिर क्या है बला!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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दुनिया भर में हर प्राणी अपने अपने तौर तरीकों से संतानोत्पत्ति की अभिलाषा को पूरा करता है। वहीं, मनुष्य वंश बढ़ाने के अलावा आनंद के लिए संसर्ग करता है। मनुष्यों में संतान की इच्छा स्वाभाविक ही मानी जा सकती है। कल तक स्वाभाविक या प्राकृतिक कारणों से संतानोत्पत्ति में जो लोग अक्षम रहते थे, वे संतान से वंचित रह जाते थे। अब संतानोत्पत्ति के लिए लोग चिकित्सकीय उपायों का सहारा लेते हैं। कुछ दशकों से दंपत्ति सरोगेसी पद्धति अर्थात संतानोत्पत्ति के लिए किराए की गर्भ का सहारा ले रहे हैं।  माना जाता है कि किसी बात के फायदे होते हैं तो उसके घाटे भी कम नहीं हैं। वर्तमान में सरोगेसी ने जिस तरह का रवैया देखा जा रहा है उसको लेकर इस मसले में सवालिया निशान लगना लाजिमी ही हैं। किसी दूसरी महिला के गर्भ को किराए पर लेने के पहले यह जानना नितांत जरूरी है कि स्वास्थ्य से जुड़े उसके अधिकार क्या हैं! यही नहीं इसकी नैतिकता से जुड़ी बातों के लिए यह भी जरूरी है कि सरकार को इसके लिए इसकी पात्रता की शर्तों का भी खुलासा करना चाहिए।

 

 

 

 

पश्चिमी देशों में सरोगेसी का चलन आज का नहीं है। विकसित देशों में इस तरह की प्रक्रिया सालों से अपनाई जा रही है। देश में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि हम पाश्चात संस्कृति को अपनाना तो चाहते हैं पर उस सभ्यता या संस्कृति को जिस रूप में है उस रूप में अपनाने के बजाए उसकी विकृति को पहले अपनाना चाहते हैं। देश में सरोगेसी का चलन दिखाई देने लगा है। रूपहले पर्दे के अदाकार भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं। देश में सरोगेसी आज एक तरह का व्यापार बनकर रह गया है, जिसकी शिकार गरीब तबके की महिलाएं ही होती दिख रहीं हैं। इस मामले में सरकार ने अपना रूख अब तक साफ नहीं किया है।

 

 

 

पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा सरोगेसी नियमन विधेयक लोकसभा में पेश किया। यह लोकसभा में तो पारित हो गया पर अभी इस बिल को राज्य सभा में पास होना बाकी है। इस विधेयक को जिस स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है उसमें विरोध और असहमति के सुर भी उठते दिखे। इस विधेयक में सरोगेट मदर बनने के लिए किसी करीबी रिश्तेदार को चुनने की बाध्यता को लेकर विशेष तौर पर लोग असहमत नजर आ रहे हैं। इसके लिए कुछ ठोस आधार भी पेश किए गए हैं। अगर करीबी रिश्तेदार की बाध्यता रखी जाती है तो निश्चित तौर पर निसंतान दंपत्तियों के सामने विकल्प बहुत ही सीमित रह जाएंगे।

 

 

 

 

इसके लिए बनाई गई संसदीय समिति के द्वारा विचार विमर्श के उपरांत अपनी राय भी दी। उसकी राय के अनुसार किराए की कोख के लिए करीबी रिश्तेदार की बाध्यता को समाप्त किया जाना चाहिए और इसके लिए किसी भी इच्छुक महिला को किराए की कोख उपलब्ध कराते हुए मां बनने की छूट देने की बात समिति द्वारा कही गई है। समिति की यह राय भी ठीक मानी जा सकती है कि 35 से 45 साल की तलाकशुदा या विधवा महिला को सरोगेसी मदर बनने में अपनी भूमिका देने की बात के लिए छूट प्रदान की जानी चाहिए।

 

 

 

 

सरकार को इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करने की प्रक्रिया में सरोगेट मदर और होने वाले बच्चे की सुरक्षा और अन्य मामलों में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, शारीरिक, आर्थिक आदि मुद्दों की अनदेखी न हो पाए। गर्भधारण के बाद गर्भ में विकसित हो रहे भ्रूण को अगर सेहत से संबंधी कोई समस्या होती है तो इस मामले में सरोगेट मदर के क्या अधिकार होंगे! उसे किस तरह इससे निजात मिल पाएगी! सरकार के द्वारा इसके लिए कानून लाया जा रहा है। इस कानून में इन सभी बातों का विस्तार से उल्लेख किया जाना चाहिए।

 

 

 

आईए जानते हैं कि क्या होती है सरोगेसी? : जिन दंपत्तियों को शारीरिक या प्राकृतिक कारणों से संतान उत्पत्ति में दिक्कत आती है उनके लिए सबसे उम्दा चिकित्सकीय विकल्प सरोगेसी है। इसके जरिए दंपत्ति संतान की खुशी को न केवल हासिल किया जा सकता है वरन उसे महसूस भी किया जा सकता है। इसकी आवश्यकता तब पड़ती है जब महिला के गर्भाशय में संक्रमण हो या किन्हीं अन्य कारणों जिनमें बांझपन भी शामिल है के कारण वह गर्भधारण करने में अक्षम हो।

 

 

 

सरोगेसी के दो प्रकार सामने आए हैं। इसमें ट्रेडिशनल सरोगेसी अर्थात परंपरागत सरोगेसी और दूसरा जेस्टेशनल सरोगेसी अर्थात गर्भाविधी सरोगेसी। परंपरागत सरोगेसी में पुरूष के शुक्राणुओं को गर्भ धारण करने में सक्षम किसी अन्य महिला के अण्डाणुओं के साथ निश्चेतन कराया जाता है। इसमें जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता का होता है। इसके अलावा जेस्टेशनल सरोगेसी में पुरूष और महिला के अण्डाणुओं और शुक्राणुओं का निश्चेतन अर्थात मेल परखनली विधि से करवाया जाता है और इससे बनने वाले भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसमें बच्चे के जैनेटिक संबंध माता और पिता दोनों से होते हैं।

 

 

 

भारत में भी सरोगेसी का चलन तेजी से बढ़ रहा है। दूध उत्पादन के लिए महशूर हो चुके गुजरात के आणंद को अब सरोगेसी के एक बहुत बड़े केंद्र के रूप में जाना पहचाना जाने लगा है। एक आंकलन के अनुसार आणंद में डेढ़ सौ से ज्यादा फर्टिलिटी सेंटर्स अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कहा जाता है कि दुनिया के चौधरी अमेरिका में सरोगेसी के जरिए संताप पाने के इच्छुक दंपत्तियों को पचास लाख रूपए तक खर्च करना पड़ता है, जबकि भारत में यह महज दस से पंद्रह लाख रूपए में ही हो जाती है।

 

 

 

एक आंकलन के अनुसार अब दुनिया भर में सरोगेसी के मामले में भारत अव्वल स्थान पर जा पहुंचा है। दुनिया भर में अगर सौ सरोगेसी के मामले होते हैं तो उसमें से साठ मामले भारत में ही होने की बात कही जाती है। देश में गुजरात के अलावा अन्य प्रांतों में भी इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है। चूंकि भारत में किराए की कोख बहुत ही असानी और सस्ती दरों पर मिल जाती है इसलिए दुनिया भर के लोग अब इस मामले में भारत की ओर रूख करते दिख रहे हैं।

 

 

 

वैसे यह बात भी उभरकर सामने आ रही है कि देश में रोजगार के साधनों का अभाव और गरीबी के चलते गरीब तबके की महिलाएं ही सरोगेट मदर के रूप में सामने आ रहीं हैं। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि महज 18 साल से 35 साल तक की युवतियां भी पैसों के लालच में सरोगेट मदर बनने को तैयार हो जाती हैं। इसके लिए उन्हें गर्भधारण करने के बाद बच्चे के जन्म तक बेहतर खानपान, रहन सहन के अलावा चार से पांच लाख रूपए तक मिल जाते ळै। इस तरह के अनेक मामले सामने भी आ चुके हैं। कई बार इसमें परेशानी भी आ जाती है, क्योंकि अगर जन्म लेने वाली संतान दिव्यांग पैदा हो या किसी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित हो तो लोग इस तरह के बच्चों को लेने से इंकार भी कर देते हैं।

 

 

 

चर्चा अगर बॉलीवुड की हो तो अभिनेता आमिर खान और उनकी पत्‍नी किरण राव द्वारा किराए की कोख के जरिए संतान प्राप्त की है। यह बात अलग है कि अभिनेता आमिर खान को अपनी पूर्व पत्‍नी रीना दत्ता से एक पुत्री और एक पुत्र पहले से है। आमिर खान के सरोगेसी से बच्चा पाने के बाद लोगों की दिलचस्पी इस बात में बढ़ी कि आखिर सरोगसी क्या बला है। इतना ही नहीं फिल्म मेकर करण जौहर ने भी सरोगेसी के जरिए जुड़वांं बेटा और बेटी पाई है। इसके पहले 2006 में तुषार कपूर भी सिंगल डैड बन चुके हैं।वैसे अब सरकार ने इस मामले में संजीदगी दिखाई है। सरकार ने विधेयक लाया है, जो लोकसभा में तो पास हो चुका है पर अभी यह राज्य सभा में पास होना बाकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार द्वारा इस मामले में सारे अच्छे और बुरे पहलुओं पर विचार कर ही इसे कानून की शक्ल देने का प्रयास किया जाएगा!

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इसके लिए वह स्‍वयं उत्‍तरदायी हैं। संस्‍थान का इससे कोई लेना-देना नहीं हैं।

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