मेरी आवाज सुनो
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हम कोई दोषी नहिं हैं। हम तो निर्दोष हैं। शायद हमारे माँ-बाप भी….वो कहते हैं हम पर झूठा मुकद्दमा चल रहा है या चल चूका है।
हम तो अब भी छोटे हैं तब तो बहोत ही छोटे थे जब हम यहाँ आये। हमारे कंइ साथी तो यहीं पैदा हुए हैं।
ख़ेर जो भी है हमारा क्या कूसूर था? जो हमारा बचपन यहीं गुज़र रहा है इन दिवारों के बीच!!!
हाँ पर यहाँ के साहब लोग बहोत अच्छे हैं जो हमारा हर त्यौहार“योगक्षेम मानव संस्थान” के साथ-सहकार से मनाने देते हैं।
आज हमारा राष्ट्रिय त्यौहार है। हम बडे जोश से मनाते हैं।आज हमें सर्कस देखने और बगीचे की सैर करने को ले जाया जायेगा।
वहाँ की तस्वीर भी आप को दिखलायेंगे। क्या आप देखना चाहेंगे हमें?????हम फिर आएंगे अपनी कुछ तस्वीरों के साथ।
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