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“माँ” हुं।
कभी मैं भी जवान थी।
पर आज 63 कि उम्र में अब 100 से भी ज़्यादा लग रही हुं।
कारन?
कुछ बेवफ़ा/ गद्दार “संतानों“कि वजह से।
जिन्हों ने मुझे कमज़ोर कर दिया है।
आज में आपको अपनी तस्वीर बतानेवाली हुं एक आत्मकथा के रुप में।
पर अब सिर्फ़ कहलाने को रह गई हुं। मेरी ही संतान मुझे खोखला करने पर तुली हुई है।
माँ “है।
पर अंदर ही अंदर मेरे बच्चे आपस में लदते-झगडते रहते हैं।
वो भी क्या ज़माना था कि मेरे लिये जान देने को मेरी संतान तैयार थी। पर आज …… ये संतान मेरी जान के पीछे पडी हुई है।
अपने स्वार्थ की ख़ातिर इन लोगों ने मुझे बदनाम कर रख्खा है।
कभी पैसों कि खातिर तो कभी ज़मीन की ख़ातिर।
कहती रहती हुं कि भाई !!
अरे आपस में मिलकर रहो ।
पडोसी तो खुश होंगे ही”।
“माँ” को बडा गुरुर था । जाने दो ये सब बाहरी दिखावा है भीतर क्या है खुलकर सामने आता है”।
बताओ तब मेरा ख़ून खौलेगा या नहिं???????
आई पी एल ख़ेले जा रहेहो भ्रष्टाचार के रुप में।
भारतमाता.…….हुं?
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