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…तेरे बिन ” जागरण”

मेरी आवाज सुनो
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वैसे तो मेरा ट्रांसफर   हुए एक महिना हो चुका है पर “बाबा” के मौत की वजह से नई जगह पर जोइन्ट करते ही  एक महिने की छुट्टी पर रही जिससे

उनका क्रिया कर्म भी हो जाये। बाबा तो नहिं रहे पर घर के काम से निपटते ही मेरा ज़्यादातर वक़्त जागरण जंकशन पर ही पास होने लगा। वो तो जैसे

मेरा एक साथीदार बन गया। अपनी हर बात को एक रचना का रुप देकर मैं सुब्ह से शाम तक लिखती रहती। पढती रहती।

तन्हाई में मेरा साथी जो बन चुका था वो। पता ही नहिं चला कि मेरी लिखी बात कभी नंबर का स्वरुप ले लेगी!!!  अपने ब्लोग को 1 से 10 नबरों में पाकर

मुझे और भी आनंद आने लगा। हालाकि अब कोंटेस्ट तो खतम हो चुका है पर जागरन का नशा अब भी मुझ में छाया हुआ है। घर में इंटरनेट जो है तो

आतेजाते मन कि बात लिखती-पढती रहती हुं। पर अब…?

अब जागरण की जुदाई कैसे सह पाउंगी मैं? मेरा जहाँ तबादला हुआ है वो एक मध्यस्थ जेल डीस्पेनसरी है। वहां ना तो नेट है ना मोबाईल!!! मेरा सर्विस

अवर है सुब्ह 8.30 से दोपहर 12.30 और दोपहर 3-30 से 6.30 शाम तक।

अब बात ये है कि मुझे जो क्वाटर्र मिला है वहाँ ना तो टेलिफ़ोन कनेक्शन है फ़िर नेट की तो बात ही कहाँ? फ़िर भी मैं हिंमत हारनेवाली नहिं हुं। जल्द ही

कोशिश करुंगी कि टेलीफ़ोन और नेट दोनों ही ले लुं।

पर बात तो है जुदाई कि!!! जागरण जंकशन और तमाम जागरण से जुडे ब्लोगरों  कि जुदाई की है।

पता नहिं ये जुदाई कब तक सहनी होगी?

एक आदत-सी पड  गई है जागरण जंकशन की।

ये एक ऐसा जंकशन है कि जहाँ हर तरहाँ के लोग अपने विचार बिना किसी संकोच लिख पाते हैं। आज वो

साथी से मैं बिछ्ड रही हुं।

आज मेरी आखरी रात है जी चाहता है बहोत……सी पोस्ट लिख दुं सारी रात जागकर।

कल 10 बजे अपनी नयी जगह पर चली जाउंगी परसों अपनी ड्युटी पर जाना जो है।

पता नहिं ये लं….बी जुदाई कब ख़त्म होगी?

एक “परिवार को छोडकर जाना बेहद मुश्किल होता है।

“जागरण जंकशन “से जैसे मैंने  एक परिवार ही तो पाया था।

तुम बहोत याद आओगे!!!! कैसे रहेंगें तुम बिन हम?

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